'संसद-विधानमंडलों में कानून पर कम होती चर्चा चिंताजनक' शिमला में बोले ओम बिरला
देश में संसद व विधानमंडलों को लगातार गतिरोध और उनके बैठकों की घटती तादाद को लेकर लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने बुधवार को गहरी चिंता जताई। उन्होंने कहा विधानमंडलों की घटती संख्या व कानून निर्माण के दौरान उन पर सदन में व्यापक चर्चा के समय में कमी गहरी चिंता की बात है। लोकसभा स्पीकर ने यह चिंता शिमला में आयोजित 82वें पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन के शुभारंभ के मौके पर अपने संबोधन में जताई। दरअसल पिछले कुछ सत्रों के दौरान विपक्ष संसद में लगातार बिल पास होते समय पर्याप्त चर्चा ने होने को लेकर अपनी आपत्ति व विरोध जताता रहा है।
वहीं मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि कई जगह बिलों पर चर्चा नहीं होती। सम्मेलन में बोलते हुए स्पीकर ने कहा कि सदन में होने वाले गतिरोध व हंगामे के मद्देनजर विधानमंडलों का गरिमा बनाए रखने के लिए कुछ ठोस व निर्णायक कदम उठाने होंगे। उनका कहना था कि इस बारे में सभी राजनैतिक दलों से चर्चा किए जाने की जरूरत है। इस मौके उन्होंने जन अपेक्षाओं को पूरा करने और जनता के अधिकारों के संरक्षण के लिए वहां मौजूद तमाम राज्यों के पीठासीन अधिकारियों से विधानमंडलों के नियमों व प्रक्रियाओं की समीक्षा किए जाने की अपील भी की।
उन्होंने सभी विधामंडलों में नियमों की प्रक्रियाओं में एकरूपता बनाए रखने के लिए एक मॉडल दस्तावेज तैयार किए जाने पर भी जोर दिया। उनका कहना था कि आजादी के 75वें साल में हम सब को मिलकर एक ऐसा मॉडल तैयार करना चाहिए कि जब देश आजादी के सौ साल पूरे करे तो देश के सभी विधानमंडलों में नियमों व प्रक्रियाओं में एकरूपता दिखे, ताकि कानून निर्माता देश के लोगों की अपेक्षाओं व आंकाक्षाओं के अनुरूप काम कर सकें।
क़ानूनों की समय-सीमा पर उपसभापति ने दिया ज़ोर
इस मौक़े पर पर राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने जहां एक ओर सदन में सरकार की ओर से दिए जाने वाले आश्वासनों को पूरा किए जानी का मुद्दा उठाया, वही उन्होंने ज़रूरत के आधार पर क़ानूनों की समयसीमा का बिंदु भी रेखा किया। हरिवंश का कहना था कि अपने यहाँ समय समय पर पुराने क़ानूनों की समीक्षा किए जाने की काफ़ी ज़रूरत है। पीएम मोदी द्वारा लगभग 1500 ग़ैरज़रूरी क़ानूनों का रद्द किए जाने की पहल का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि राज्यों में भी ऐसी पहल की काफ़ी ज़रूरत है।
उन्होंने यूपी क कर्नाटक जैसे राज्यों का ज़िक्र करते हुए कहा कि दूसरे राज्यों को भी यह कदम उठाना चाहिए। उल्लेखनीय है कि यूपी जहां लगभग 500 तो वहीं कर्नाटक 1300 पुराने क़ानूनों को रद्द कर चुका है। इसी के साथ उन्होंने क़ानूनों के मामले में सनसेट क्लाज़ (क़ानूनों की निश्चित समयसीमा) लागू किए जाने पर ज़ोर दिया। हरिवंश का कहना था कि अपने यहाँ कुछ क़ानून 200 साल पुराने थे, जिनकी कोई ज़रूरत नहीं थी, उन्हें रद्द किया गया। इस स्थिति से बचने के लिए सनसेट क्लाज़ डालने किए जाने की ज़रूरत है। उनका कहना था कि कई देशों में ऐसा चलन है।
अपने संबोधन में उपसभापति ने विधानमंडलों के सदन में सरकारों द्वारा दिए जाने वाले आश्वासनों की बात करते हुए उनके पूरा ना होने पर चिंता जताई। हरिवंश का कहना था कि संसद से लेकर विधानसभाओं तक में विभिन्न सरकारों की ओर से दिए आश्वासन सालों से लंबित पड़े है। कई आश्वासन तो कोरे रहे, क्यूँकि उनके लिए ना तो बजट में प्रावधान रखा गया और ना ही ठोस योजना बनी। कुछ मामलों में यह दस साल से लेकर तीस सालों तक लटके हैं।उनका कहना था कि सरकार, व्यक्ति सब बदल जाते हैं, फिर भी कमिटियों में उनपर चर्चा की जाती है। जिसपर समय, संसाधन सभी जायज़ होते हैं। ऐसे में सदन में किए गए आश्वासनों की समीक्षा कर उनपर उचित कदम उठाए जाने चाहिए।
सम्मेलन में बोलते हुए हिमाचल प्रदेश के नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने पीठासीन अधिकारियों द्वारा राजनीतिक पार्टियों की गतिविधियों में भाग लेने का मुद्दा उठाते हुए कहा कि कई बार पीठासीन अधिकारियों की राजनीतिक दलों की बैठक में भाग लेने या चुनाव प्रचार में भाग लेने की घटनाएँ सामने आती हैं। सम्मेलन में इन मुद्दों पर भी चर्चा होनी चाहिए। वहीं उन्होंने आरोप लगाया कि विधानमंडलों में जानकारी व सूचनाएं छिपाई जाती हैं। कई बार आरटीआई में जानकारी पहले मिल जाती है, विधान मंडल में उसे बाद में रखा जाता है।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स