अखिलेश, योगी… यूपी के रण में ये सियासी धुरंधर छोटे दलों की शरण में क्यों?
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के लिए तैयारियों में जुटी प्रमुख पार्टियां अब छोटे सियासी दलों का रुख कर रही हैं। बीजेपी और सपा समेत लगभग सभी दल समाजिक और क्षेत्रीय समीकरण सुधारने के लिए छोटे दलों का सहारा ले रहे हैं। छोटे दल भले ही जिले तक सीमित हों पर उनका प्रभाव काफी बड़ा है।
ये दल मूलत: जाति आधारित हैं। इनका क्षेत्र विशेष पर प्रभाव रहता है। उनके इस प्रभाव को भुनाने की फिराक में बड़ी सियासी पार्टियां मशक्कत कर रही हैं। प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी ने छोटे दलों से गठबंधन करने का निर्णय लिया है। अखिलेश ने साफ तौर पर कहा भी है कि बड़ी पार्टियों से हमारा गठबंधन का अनुभव अच्छा नहीं रहा है। इस कारण इस बार हम छोटे दलों के साथ चुनाव लड़ेगें।
मसलन सपा ने महान दल के साथ हाथ मिलाया है। इसका प्रभाव बरेली, बदायूं और आगरा क्षेत्र के सैनी, कुशवाहा शाक्य के बीच है। इसके अलावा जनवादी पार्टी भी सपा के साथ है। इसके अलावा सपा का आरएलडी से गठबंधन लोकसभा चुनाव से चला आ रहा है। अब सीटों को लेकर बात हो रही है।
राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी), सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा), महान दल और जनवादी पार्टी जैसी पार्टियां, जिनका राज्य के विभिन्न हिस्सों में प्रभाव है, आने वाले दिनों में सपा के साथ सीट बंटवारे के फॉमूर्ले को औपचारिक रूप देने के लिए तैयार हैं।
पार्टी को उम्मीद है कि किसान आंदोलन से उसे पश्चिमी यूपी के मुसलमानों और जाटों को एक ही मंच पर लाने में मदद मिलेगी। सुभासपा प्रमुख ओमप्रकाश राजभर ने अखिलेश यादव के साथ गठबंधन की घोषणा कर रखी हैं। ओमप्रकाश राजभर के भागीदारी संकल्प मोर्चो में भारतीय वंचित पार्टी, जनता क्रांति पार्टी, राष्ट्र उदय पार्टी और अपना दल शामिल हैं। ये पार्टियां अभी जाति विशेष में अपनी पकड़ के कारण चुनाव में असरदार साबित होती हैं।
2017 के विधानसभा चुनावों में, सुभासपा ने भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा जिसमें से चार पर जीत हासिल की थी। एक सहयोगी के रूप में सुभासपा के साथ, सपा राजभर के वोटों को हासिल करने के लिए आशान्वित हैं।
दूसरी तरफ छोटे दलों के साथ गठबंधन में भाजपा का अनुभव भी काफी अच्छा रहा है। इसका लाभ उन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में मिल चुका है। 2017 में सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, अपना दल के साथ गठबंधन कर 403 में से 324 सीटें हासिल की। इस चुनाव में अपना दल को 11 सीटें और सुभासपा को 8 सीटें दी गईं, वहीं चुनाव में अपना दल को 9 सीटों पर जीत मिली तो ओमप्रकाश राजभर को 4 सीटों पर जीत मिली।
2019 के चुनाव में निषाद पार्टी से भी गठबंधन किया तो इसका बड़ा फायदा मिला। इस बार भी भारतीय जनता पार्टी छोटे दलों को पूरा सम्मान देने की तैयारी में है। इसी कारण इस बार अपना दल और निषाद पार्टी के साथ भाजपा का गठबंधन बरकार है। इसके अलावा हिस्सेदारी मोर्चा के सात घटक दल भाजपा के साथ आ गए।
भाजपा के साथ गठबंधन करने वालों में भारतीय मानव समाज पार्टी, मुसहर आंदोलन मंच (गरीब पार्टी), शोषित समाज पार्टी, मानवहित पार्टी, भारतीय सुहेलदेव जनता पार्टी, पृथ्वीराज जनशक्ति पार्टी और भारतीय समता समाज पार्टी ने अपना समर्थन भाजपा को दिया है।
कांग्रेस पार्टी ने अपनी सक्रियता को तेज कर दिया है। वह लखीमपुर, किसान आंदोलन का फायदा लेने के मूड में दिख रही है। बसपा भी जमीनी रूप से अपना काम धीरे-धीरे करने में जुटी है। राजनीतिक विष्लेष्कों की मानें तो सत्तारूढ़ दल भाजपा और सपा को चुनावी रणनीति में छोटे दलों की अनदेखी कर पाना मुश्किल होगा। इसकी वजह राजनीतिक और समाजिक हालात है। साथ जातीय समीकरण की गोट में भी इन दलों की अच्छी भूमिका होती है।
भाजपा के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष दीक्षित का कहना है कि भाजपा सबका साथ सबका विकास की राजनीति पर काम करती है। विकास और राष्ट्र निर्माण के लिए जो भी साथ आना चाहता उसे साथ लेकर चलती है। राजनीति में सबका अपना स्थान है। इसमें कोई छोटा बड़ा नहीं होता है।
सपा के प्रवक्ता डा. आशुतोष वर्मा का कहना है कि राष्ट्रीय अध्यक्ष कई बार कह चुके है उनका बड़े दलों के साथ अनुभव अच्छा नहीं रहा है। देखा गया है कि हर चुनाव में इनका रोल हर जगह अहम रहा है। इनका अपना-अपना स्थायित्व है। अपने-अपने क्षेत्रों में इनकी अच्छी पकड़ है।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स