'भारत में विपक्ष को विरोध करने का तो अधिकार है, बांग्लादेशी सरकार लोकतंत्र ही नहीं मानती'
नई दिल्ली
बांग्लादेश में पूजा पंडालों पर हमला हुआ, अल्पसंख्यकों को डराने-धमकाने का कार्य एक बार नहीं, अनेकों बार किया गया। क्या यह एक आदर्श राज्य की कल्पना है जहां अल्पसंख्यक कभी सुरक्षित ही न महसूस कर सकें? इस विषय पर जानी-मानी लेखिका और ऐसे मसलों पर तार्किक विचार रखने वाली
तस्लीमा नसरीन से बात की नाइश हसन ने। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :
बांग्लादेश में पूजा पंडालों पर हमला हुआ, अल्पसंख्यकों को डराने-धमकाने का कार्य एक बार नहीं, अनेकों बार किया गया। क्या यह एक आदर्श राज्य की कल्पना है जहां अल्पसंख्यक कभी सुरक्षित ही न महसूस कर सकें? इस विषय पर जानी-मानी लेखिका और ऐसे मसलों पर तार्किक विचार रखने वाली
तस्लीमा नसरीन से बात की नाइश हसन ने। प्रस्तुत हैं बातचीत के मुख्य अंश :
- दुर्गा पूजा के मौके पर बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों को फिर से निशाना बनाया गया। इस बारे में आप का क्या कहना है?दुर्गा पूजा के मौके पर लगभग हर साल कुछ खराब लोग, जो कट्टरपंथी हैं, जिहादी हैं, वे हिंदुओं पर अटैक करते है, उनके घर भी जला देते हैं। उनका मकसद यह होता है उन्हें इतना सताओ कि वे देश छोड़ कर चले जाएं। ऐसा वह इसलिए करते है ताकि बाद में उनकी जमीनों पर कब्जा कर लें। ये फेनेटिक लोग बात धर्म की करते हैं, लेकिन इनका मकसद अल्पसंख्यकों को डरा कर जमीन कब्जा करना होता है। वैसे तो यहां हिंदू की संख्या कम होती जा रही है। ज्यादातर अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, या इंडिया चले गए। यह देखकर अच्छा नहीं लगता। सरकार को उन्हें सुरक्षा देनी चाहिए। बात यह भी है कि मुस्लिम त्यौहारों पर सुरक्षा की जरूरत नहीं पड़ती तो फिर हिंदू त्यौहारों पर ऐसा क्यों हो, सरकार को इस पर सोचना चाहिए।
- जहां मुस्लिम अल्पसंख्यक हैं वहां वह भेदभाव और सताए जाने की बात करते हैं। लेकिन जहां अधिक हैं, वहां अल्पसंख्यकों पर हमलावर हैं चाहे बांग्लादेश हो या पाकिस्तान। इसके पीछे क्या वजह देखती हैं आप?ये हमले उन पर ही नहीं होते जो मुस्लिम नहीं हैं। ये उन पर भी होते हैं जो मुस्लिम हैं। पाकिस्तान में देखिए हिंदू, ईसाई के साथ ही अहमदिया, और शिया मुस्लिम पर भी हमले होते हैं। अभी हाल ही में अफगानिस्तान की मस्जिद में 50 से ज्यादा शिया मुस्लिमों को मार दिया गया। हमला इसलिए भी होता है कि तुम सहधर्मी तो हो, लेकिन हमारे जैसे नहीं हो। मसलन, मैं एक सुन्नी मुस्लिम परिवार में पैदा हुई, बाद में मैं सेकुलर और एथीस्ट हो गई। यह मेरा अपना चुनाव था। लेकिन अब वे तमाम लोग जो सुन्नी भी हैं, हमसे नफरत करते हैं, हमारे विचारों को जिंदा नहीं रहने देना चाहते, यहां तक कि हमें मार डालना चाहते हैं। तो इसका संबंध धर्म विशेष से भी नहीं होता। वे अपने धर्म वालों को भी खूब नुकसान पहुंचाते हैं।
- कहा जाता है इस्लाम सब्र का मजहब है, लेकिन ईश निंदा जैसे सवाल पर मुसलमान एकदम जामे से बाहर हो जाता है। यह कितना इस्लामिक है?देखिए, टॉलरेंस बहुत जरूरी है। शिक्षा नहीं है न। बहुत से मौलवी अपनी महफिलों में जवान लोगों का ब्रेन वॉश करते हैं। उनकी व्याख्या से बहुत से नौजवान जिहादी, टेररिस्ट तक बन जाते हैं। मस्जिद, मदरसों में जो शिक्षा दी जाती है, उसे भी देखना पड़ेगा। वह बहुत ब्रेन वाश करती है। इसीलिए यंग जनरेशन जो आई, बहुत इनटोलरेंट हो गई, फेनेटिक हो गई। इस सब-कांटिनेंट में तो इस्लाम राजनीति का अंश बन गया न।
- क्या मुसलमान सेकुलर नेशन को एक्सेप्ट करने में हिचकिचाता है?वह सेकुलर नेशन चाहता है दूसरे लोगों में, दूसरे देश में। जहां वह खुद बहुसंख्यक है, वहां वह नहीं चाहता। वह जब रहने के लिए अमेरिका, यूरोप, इंडिया जाता है तो सेकुलरिज्म उसे अच्छा लगता है। लेकिन खुद वह इस्लामिक कंट्री बनाना चाहता है। मुस्लिम कंट्री को वह पूरा-पूरा फंडामेंटलिस्ट कंट्री बनाना चाहता है।
- अफवाहें कितना जानलेवा साबित हो रही हैं? इसे रोकने में क्या बांग्लादेश सरकार पूरी तरह से नाकाम है?बांग्लादेश की सरकार तो कोई डेमोक्रेसी मानती ही नहीं। शेख हसीना हजारों साल राज करना चाहती हैं। विपक्ष को पूरी तरह खत्म कर दिया। बड़े-बड़े इस्लामिक दलों को बहुत पैसा दिया, चंदा दिया ताकि रूलिंग पार्टी को वह सपोर्ट करें। इस्लामिस्ट को पाला सरकार ने। वुमन लीडरशिप इस्लाम के खिलाफ है, ऐसा इस्लामिस्ट न बोलें, इसलिए हसीना उन्हें पैसा-जमीन दे कर उनका मुंह बंद कराती हैं।
- ये बिल्कुल वैसा ही हो रहा है जैसा इंडिया में होता है?जी। ऐसा अच्छा नहीं है। सेकुलरिज्म को पूरा बर्बाद कर दिया गया है। यंग लोग कट्टरपंथियों के ऑनलाइन लेक्चर देखते हैं। इसका उनके मन पर गहरा प्रभाव पड़ता है। यह चीज नौजवानों को बर्बाद कर रही है।
- भारत और बांग्लादेश, दोनों ही जगह अल्पसंख्यक अक्सर निशाने पर रहता है। भारत में भी कभी चर्च पर हमला, कभी मस्जिदों पर, दलितों पर भी हमला- जैसे बारात तक न निकलने देना, लाश दफ्न न करने देना। ऐसे मामलों का क्या कोई मुकम्मल इलाज है?देखिए, मैं दोनो देशों की तुलना करके नहीं देख सकती। यहां ईद की नमाज में हंगामा हिंदू लोग नहीं करते, लेकिन वहां पूजा पंडाल पर हमला हो जाता है। 1947 में वहां अल्पसंख्यक 33 प्रतिशत थे जो अब सिर्फ 8 प्रतिशत हैं। उधर एंटी हिंदू सेंटीमेंट्स बहुत ज्यादा है। जब मैं छोटी थी तो कभी नहीं देखा कि किसी पूजा पंडाल पर अटैक हुआ हो। हिंदू, मुस्लिम, बौद्ध, ईसाई सब एक साथ शांति से रहते थे। ये सब 1990 से शुरू हुआ। ये सब नया फेनोमेनन है। आइसिस, तालिबान, अल कायदा, ये सब तो नया फेनोमेनन है।
- भारत में मौजूदा सरकार ने भी ऐसे हमलों को नियंत्रित नही किया, इसके कई उदाहरण मौजूद हैं…लेकिन यहां विपक्ष को विरोध करने का तो अधिकार है, तमाम सेक्युलर लोग यहां प्रोटेस्ट करते है, बांग्लादेश में यह अधिकार भी नहीं है। वहां विपक्ष की आवाज बहुत कम है। हां ढाका में कुछ प्रोटेस्ट जरूर हुआ, स्टूडेंटस ने रैली निकाली, लेकिन हर जगह ऐसा नहीं हो पाता। प्रोटेस्ट तो होना ही चाहिए वरना जैसे चलता है वैसे ही चलता रहेगा।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स