भाषाएं लुप्त होने पर संस्कृति भी लुप्त हो जायेगी : राज्यपाल
रांची /मांडर: भारत अलग-अलग भाषा, संस्कृति व परंपरा वाला देश है. यही इसकी सुंदरता भी है, लेकिन आधुनिकता के प्रभाव के कारण यहां कई भाषाएं अपनी पहचान खोती जा रहीं हैं. कोई भी भाषा छोटी नहीं होती है. यदि छोटी भाषाएं भी लुप्त होती हैं, तो इससे संस्कृति भी लुप्त हो जायेगी. उक्त बातें राज्यपाल सह कुलाधिपति द्रौपदी मुरमू ने शनिवार को ब्रांबे स्थित झारखंड केंद्रीय विवि में ‘लुप्तप्राय एवं कम प्रचलित भाषाएं ‘ विषय पर आयोजित दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सेमिनार के उदघाटन के मौके पर बोल रहीं थी.
राज्यपाल ने कहा कि हमें चीन व जापान को देख कर सीखना चाहिए कि अपनी मातृभाषा को संरक्षित रख कर ही विकास के मार्ग पर आगे बढ़ा जा सकता है. हमें अपनी मातृभाषा को संरक्षित रखने के लिए आगे आना होगा. उन्होंने कहा कि आज हर जगह हर्बल उत्पाद व जड़ी-बूटियों की चर्चा हो रही है,जो कि जनजातीय समुदाय में सदियों से प्रयोग हो रहा है. यह ज्ञान उन्हें पीढ़ी-दर-पीढ़ी से मिलता चला आ रहा है. इस पर बृहत पैमाने पर रिसर्च (शोध) की आवश्यकता है.
केंद्रीय विवि के आदिवासी लोकगीत, भाषा एवं साहित्य केंद्र की ओर से आयोजित इस सेमिनार में कुलपति प्रो नंद कुमार यादव इंदु ने कहा कि केंद्रीय विवि भारत के लुप्तप्राय भाषाअों के संरक्षण एवं उनके सरल दस्तावेजीकरण के दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है. आज दुनिया की छह हजार भाषाअों में से भारत की 196 भाषाएं लुप्त हाेने की कगार पर हैं. सेमिनार में लखनऊ विवि की प्रो कविता रस्तोगी ने कहा कि सेमिनार के माध्यम से भाषायी विविधता को सहेजने व समेटने का प्रयास किया जा रहा है. कार्यक्रम मे जेएनयू दिल्ली के प्रो पीकेएस पांडेय ने विलुप्त हो रही भाषा व लिपि के निर्माण की समस्या उसके दस्तावेजीकरण और इसमें डिजिटल तकनीक के उपयोग की विस्तृत जानकारी उपलब्ध करायी. इस अवसर पर सोएस विवि लंदन के प्रो पीटर के आस्टिन, सीआइआइएल के डाॅ सुजोय सरकार ने भी विचार व्यक्त किये.
लुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण करने की जरूरत
आज हर लुप्तप्राय भाषाओं का संरक्षण करने की जरूरत है. भाषा के संरक्षण के लिए नयी तकनीक का इस्तेमाल होना चाहिए. इसके इएलकेएल के माध्यम से वर्षों से प्रयास जारी है.
प्रो कविता रस्तोगी
जनजातीय भाषा को लिपिबद्ध करना आवश्यक
झारखंड की तमाम जनजातीय भाषा के अलाव ट्राइबल मूवमेंट को भी लिपिबद्ध करने की जरूरत है. झारखंड में बड़े पैमाने पर इस पर काम करना होगा.
प्रो पीकेएस पांडेय
लुप्त हो रहे ट्राइबल लैंग्वेज को संरक्षित करें
इस तरह के कार्यक्रम से सांस्कृतिक विविधता सामने आती हैं और कार्यक्रम में राज्यपाल का शामिल होना भी महत्वपूर्ण है. इससे लुप्त हो रहे ट्राइबल लैंग्वेज को संरक्षित रखने में निश्चित रूप से मदद मिलेगी.