भारत मिसाइल प्रौद्योगिकी में पूरी तरह से ‘आत्मनिर्भर’ है: डीआरडीओ प्रमुख
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की ओर से आयोजित एक ऑनलाइन कार्यक्रम में रेड्डी ने कहा कि अगर एक देश को समृद्ध और ‘आत्मनिर्भर’ बनना है, तो “हमें उन्नत प्रौद्योगिकी पर काम करने की जरूरत है” और शिक्षण संस्थानों की इसमें बड़ी भूमिका है।
रेड्डी ने 1980 और 90 के दशक में डीआरडीओ के विकास को याद किया और मिसाइल प्रौद्योगिकियों पर काम करने वाले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम, जिन्हें भारत के ‘मिसाइल मैन’ के रूप में जाना जाता है, सहित अन्य वैज्ञानिकों की भूमिका की सराहना की।
उन्होंने एकीकृत निर्देशित मिसाइल विकास कार्यक्रम (आईजीएमडीपी) के तहत भारत द्वारा विकसित पांच मिसाइलों – पृथ्वी, अग्नि, आकाश, त्रिशूल और नाग का जिक्र किया।
उन्होंने कहा, “हमने आईजीएमडीपी के तहत पृथ्वी, अग्नि, आकाश, त्रिशूल, नाग का विकास किया।”
रेड्डी ने कहा, “और फिर हम बैलेस्टिक मिसाइलों वाले उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गए जो दुश्मन की मिसाइल को रोक सकते हैं और उसे मार सकते हैं। और, फिर लंबी दूरी और अधिक क्षमताओं वाली कई और मिसाइलें बनी।”
उन्होंने कहा, “आज मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि हमारे पास मिसाइल प्रौद्योगिकी में पूर्ण आत्मनिर्भरता है और हम देश में बेहद उन्नत मिसाइल विकसित कर सकते हैं।”
उन्होंने उपग्रह रोधी (ए-सैट) परीक्षण के बारे में भी बात की है जिसमें मार्च 2019 में भारत ने ए-सैट मिसाइल से अंतरिक्ष में अपने एक उपग्रह को मार गिराया गया था और अपनी इस क्षमता का प्रदर्शन किया था। इसके बाद बाद भारत अमेरिका, रूस तथा चीन जैसे देशों के प्रतिष्ठित क्लब में शुमार हो गया था जिनके पास ऐसी क्षमता है।
जेएनयू के इंजीनियरिंग स्कूल ने ‘भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए रक्षा प्रौद्योगिकी’ पर व्याख्यान का आयोजन किया था जिसमें विश्वविद्यालय के कुलपति एम जगदीश कुमार, संकाय के कई सदस्यों एवं विद्यार्थियों ने ऑनलाइन हिस्सा लिया।
फोटो और समाचार साभार : नवभारत टाइम्स