स्वामी बोले- ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मंदिर को वापस लेने का समय आ गया
दशकों तक चले विवाद और अदालती फैसले से किसी तरह अयोध्या मुद्दे का हल हुआ। उसके ठीक बाद मथुरा में वैसे ही मुद्दे को उठाने की कोशिश हो चुकी है। अब काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद विवाद को हवा देने की कोशिश होने लगी है। खासकर तब जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने संसदीय क्षेत्र काशी पहुंचे हैं। अक्सर अपने बयानों को लेकर चर्चा में रहने वाले बीजेपी सांसद ने अब ज्ञानवापी-काशी विश्वनाथ मंदिर का राग छेड़ा है। इस बार उन्होंने ट्वीट कर कहा है कि वाराणसी में औरंगजेब के ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मंदिर के स्थान पर तोड़कर बनाई गई मस्जिद की जगह फिर से ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करने की वकालत की है। बता दें कि काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इसलिए ये हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्रों में से एक माना जाता है।
सुब्रमण्यन स्वामी ने ट्वीट कर कहा कि वाराणसी में वर्तमान काशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण होलकर साम्राज्य की रानी अहिल्याभाई ने करवाया था क्योंकि वह ज्ञानवापी काशी विश्वनाथ मंदिर के उस स्थान पर ठीक होने की प्रारंभिक संभावना नहीं देख सकती थीं जहां औरंगज़ेब के आदेश पर एक मस्जिद बनाई गई थी। लेकिन हमें अब इसे ठीक करना होगा।
महारानी अहिल्याबाई ने कराया था निर्माण
मुगल सेना के आदि विश्वेश्वर मंदिर ध्वस्त किए जाने से पहले ज्ञानवापी परिसर और ज्ञानवापी कूप मंदिर का हिस्सा थे। स्कंदपुराण के काशी खंड में ज्ञानवापी का विस्तृत उल्लेख है। महारानी अहिल्याबाई के 1780 में बनवाए गए काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे परिसर में ज्ञानवापी कूप स्थित है। मुगल सेना स्वयंभू ज्योतिर्लिंग को क्षति न पहुंचा दे, इसलिए उस समय के महंत पन्ना के शिवलिंग को लेकर ज्ञानवापी कूप में ही कूदे थे। कूप के पास ही वह विशाल नंदी आज भी विराजमान है जो आदि विश्वेश्वर मंदिर काल में स्थापित रहे और उनका मुंह उसी ओर (मस्जिद के भूतल की ओर) है जहां पुराना मंदिर रहा।
ज्ञानवापी और काशी एक दूसरे के पूरक
ज्ञानवापी और काशी एक दूसरे के पूरक हैं। काशी का अर्थ है ज्ञान का प्रकाश एवं ज्ञानवापी का अर्थ ज्ञानतत्व से पूर्ण जलयुक्त विशेष आकृति का तालाब है। स्कंदपुराण के काशीखंड में ज्ञानवापी का विस्तृत उल्लेख है।
औरंगजेब के आदेश पर तोड़ा गया था मंदिर
काशी विश्वनाथ मंदिर भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है, इसलिए ये हिंदुओं की आस्था के सबसे बड़े केंद्रों में से एक माना जाता है। भारत में मुस्लिम आक्रमणकारियों के आने के साथ ही काशी विश्वनाथ मंदिर पर हमले शुरू हो गए थे। सबसे पहले 11वीं शताब्दी में कुतुबुद्दीन ऐबक ने हमला किया था। इस हमले में मंदिर का शिखर टूट गया था, लेकिन इसके बाद भी पूजा पाठ होती रही। 1585 में राजा टोडरमल ने काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण कराया था। वो अकबर के नौ रत्नों में से एक माने जाते हैं,लेकिन 1669 में औरंगजेब के आदेश पर इस मंदिर को पूरी तरह तोड़ दिया गया और वहां पर एक मस्जिद बना दी गई। 1780 में मालवा की रानी अहिल्याबाई ने ज्ञानवापी परिसर के बगल में ही एक नया मंदिर बनवा दिया, जिसे आज हम काशी विश्वनाथ मंदिर के तौर पर जानते हैं।
साभार : नवभारत टाइम्स