'हैंगओवर' जैसा था Pfizer की कोरोना वैक्सीन का असर, सिरदर्द और बुखार भी
कुछ दिन पहले ही कोरोना वायरस की वैक्सीन बना रही कंपनी Pfizer ने दावा किया था कि उसकी वैक्सीन 90% तक असरदार है। अब उसके ट्रायल का हिस्सा रहे वॉलंटिअर्स बता रहे हैं कि वैक्सीन का असर दरअसल कैसा रहा। वॉलंटिअर्स ने बताया है कि वैक्सीन लेने का बाद उन्हें ‘हैंगओवर’ जैसा महसूस होता रहा। उन्हें सिर में दर्द, बुखार और मांसपेशिंयों में भी दर्द रहा जो फ्लू की वैक्सीन में होता है लेकिन यह दूसरी खुराक लेने के बाद और गंभीर था।
Pfizer Coronavirus Vaccine: Pfizer-BioNTech SE की कोरोना वायरस वैक्सीन के 90% असरदार होने का दावा किया गया है। इसके ट्रायल में शामिल हुए वॉलंटिअर्स ने बताया है कि इससे उन्हें कैसा महसूस हुआ।
कुछ दिन पहले ही कोरोना वायरस की वैक्सीन बना रही कंपनी Pfizer ने दावा किया था कि उसकी वैक्सीन 90% तक असरदार है। अब उसके ट्रायल का हिस्सा रहे वॉलंटिअर्स बता रहे हैं कि वैक्सीन का असर दरअसल कैसा रहा। वॉलंटिअर्स ने बताया है कि वैक्सीन लेने का बाद उन्हें ‘हैंगओवर’ जैसा महसूस होता रहा। उन्हें सिर में दर्द, बुखार और मांसपेशिंयों में भी दर्द रहा जो फ्लू की वैक्सीन में होता है लेकिन यह दूसरी खुराक लेने के बाद और गंभीर था।
क्या हुआ असर?
ट्रायल में शामिल 44 साल के एक वॉलंटिअर ग्लेन डेशील्ड्स ने बताया कि वैक्सीन लेने से उन्हें हैंगओवर जैसा महसूस होता रहा लेकिन जल्द ही ये खत्म हो गया। 45 साल की एक और वॉलंटिअर ने बताया कि पहली खुराक के बाद उन्हें साइड इफेक्ट्स महसूस हुए जो फ्लू की तरह थे लेकिन दूसरी खुराक के बाद ये और ज्यादा गंभीर रहे। 6 देशों के 43,500 से ज्यादा लोगों ने तीसरे चरण के ट्रायल में हिस्सा लिया है।
ऐसे हुए ट्रायल
वैक्सीन के ट्रायल डबल-ब्लाइंड थे। यानी इनमें हिस्सा लेने वाले वॉलंटिअर्स को यह नहीं बताया गया था कि उन्हें वैक्सीन दी गई है या नहीं। ट्रायल में सिर्फ आधे लोगों को वैक्सीन दी गई थी। वैज्ञानिक ऐसा इसलिए करते हैं ताकि यह समझा जा सके कि किसी ग्रुप को इन्फेक्शन होने का कितना खतरा है। इससे पता चलता है कि वैक्सीन ने काम किया या नहीं।
सामने है बड़ी चुनौती
Pfizer ने हाल ही में ऐलान किया था कि उसकी वैक्सीन 90% असरदार है। इससे कोरोना के कारण चिंताजनक हुए हालात के सामान्य होने की उम्मीद जगी है। हालांकि, वैक्सीन को लेकर एक बड़ी चुनौती इसकी डिलिवरी है। mRNA आधारित वैक्सीन को -70 डिग्री सेल्सियस पर रखना होगा। इसे रेफ्रिजरेटेड ट्रक और खास डिब्बों में रखना होगा जिससे ये खराब न हो। इस प्रक्रिया की लागत काफी ज्यादा हो सकती है। ऐसे में यह भी चिंता है कि कहीं गरीब आबादी इससे वंचित न रह जाए।
दर्द हुआ, लेकिन खुशी भी
ट्रायल में शामिल हुए वॉलंटिअर्स ने बताया है कि भले ही उन्हें इसके लिए साइड-इफेक्ट्स का सामना करना पड़ा, उन्हें इस बात की खुशी मिली कि आखिरकार दुनियाभर में लाखों लोगों की जान लेने वाली महामारी के अंत का रास्ता खुलने लगा है। लोग समाज के लिए अपना योगदान देने के बाद गौरव महसूस कर रहे थे। यहां तक कि एक शख्स ने तो इसकी तुलना विश्व युद्ध खत्म होने की खुशी से कर डाली।