पोषण के पांच सूत्र रखेगें बच्चे को तंदुरूस्त : स्वस्थ समाज बनाने पोषण व्यवहार के प्रति जागरूकता लाएं
रायपुर :स्वस्थ समाज के निर्माण के लिए पोषण व्यवहार में परिवर्तन आज एक आवश्यकता बन गई है। जीवन शैली के बदलाव से सामने आई कई बीमारियां हमारे लिए चुनौतियां बन गई हैं। कई देशों में मोटापा खान-पान की व्यवहारगत कमियों की वजह से तेजी से बढ़ रहा है। भोजन में पोषक तत्वों के अभाव ने लोगों की प्रतिरोधक क्षमता को कमजोर कर दिया है। पोषण के प्रति जागरूकता की कमी और समुचित पोषण का अभाव या उपेक्षा हमारे सामने कई प्रकार की बीमारियों के रूप में सामने आता है। इसका सबसे बड़ा दुष्प्रभाव कुपोषण का एक विश्वव्यापी समस्या बनकर उभरना है। कोरोना काल में लोगों को इसका महत्व गहराई से समझ आने लगा है। आहार के प्रति सही व्यवहार और जागरूकता से ही एक स्वस्थ समाज की परिकल्पना को साकार किया जा सकता है।
रिसर्च में महिलाओं और बच्चों में कुपोषण का अधिक प्रभाव पाया गया है। राष्ट्रीय परिवार एवं स्वास्थ्य सर्वे-4 के अनुसार छत्तीसगढ़ के 5 वर्ष से कम उम्र के 37 प्रतिशत बच्चे कुपोषित और 15 से 49 वर्ष की 47 प्रतिशत महिलाएं एनीमिया से पीड़ित हैं। इसे देखते हुए मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के द्वारा 2 अक्टूबर 2019 गांधी जयंती के दिन से मुख्यमंत्री सुपोषण अभियान की शुरूआत कर गर्भवती महिलाओं और 6 वर्ष तक के बच्चों के लिए गर्म भोजन की व्यवस्था की गई है, जिससे महिलाओं और बच्चों में पोषक तत्वों की कमी को पूरा किया जा सके। स्वस्थ बच्चा स्वस्थ समाज की आधारशिला होता है। इस आधारशिला को मजबूत बनाने के लिए समुदाय स्तर पर सभी की सहभागिता और जन-जागरूकता बहुत जरूरी है। एक स्वस्थ जीवन के लिए तैयारी गर्भावस्था के दौरान ही शुरू कर देनी चाहिए। स्वस्थ बच्चे के लिए मां का भी स्वस्थ होना उतना ही जरूरी है। इसमें पोषण के पांच सूत्र- पहले सुनहरे 1000 दिन, पौष्टिक आहार, एनीमिया की रोकथाम, डायरिया का प्रबंधन और स्वच्छता और साफ-सफाई स्वस्थ नए जीवन के लिए महामंत्र साबित हो सकते हैं।
1) पहले सुनहरे 1000 दिन- पहले 1000 दिनों में तेजी से बच्चे का शरीरिक एवं मानसिक विकास होता है। इनमें गर्भावस्था के 270 दिन और जन्म के बाद पहले और दूसरे वर्ष के 365-365 दिन इस प्रकार कुल 1000 दिन शामिल होते हैं। इस दौरान उचित स्वास्थ्य, पर्याप्त पोषण, प्यार भरा व तनाव मुक्त माहौल और सही देखभाल बच्चों का पूरा विकास करने में मदद करते हैं। इस समय मां और बच्चे को सही पोषण और खास देखभाल की जरूरत होती है। इस समय गर्भवती की कम से कम चार ए.एन.सी. जांच होनी चाहिए। गर्भवती और धात्री महिला को कैल्शियम और आयरन की गोलियों का सेवन कराया जाना चाहिए। इसके साथ ही संस्थागत प्रसव को प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिससे मां और बच्चे का जीवन सुरक्षित हो सके। परिवार के लिए भी यह जानना और व्यवहार में लाना जरूरी है कि जन्म के एक घंटे के भीतर बच्चे को मां का पहला पीला गाढ़ा दूध देना बहुत जरूरी है,यह बच्चे में रोगों से लड़ने की शक्ति लाता है। 6 माह से बड़े उम्र के बच्चे को स्तनपान के साथ ऊपरी आहार दिया जाना चाहिए। इसके साथ बच्चे को सूची अनुसर नियमित टीकाकरण और बच्चे 9 माह होने पर उसे नियमित विटामिन ए की खुराक दी जानी चाहिए।
2) पौष्टिक आहार- 6 महीने के बच्चे और उससे बड़े सभी लोगों को भी पर्याप्त मात्रा में तरह-तरह का पौष्टिक आहार आवश्य लेना चाहिए। पौष्टिक आहार में विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ जैसे कि अनाज, दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां और मौसमी फल लेने चाहिए। हरी सब्जियों में पालक, मेथी, चौलाई और सरसों, पीले फल जैसे आम व पका पपीता खाए जा सकते हैं। यदि मांसाहारी हैं तो, अंडा, मांस और मछली आदि भोजन में लिया जा सकता है। खाने में दूख, दूध से बने पदार्थ और मेवे आदि शामिल करें। अपने खाने में स्थानीय रूप से उत्पादित पौष्टिक खाद्य पदार्थों को शामिल करें। आंगनबाड़ी से मिलने वाला पोषाहार अवश्य खाएं। यह निश्चित मात्रा में पौष्टिक पदार्थों को मिला कर तैयार किया जाता है।
जब बच्चा 6 महीने का हो जाए तो मां के दूध के साथ घर का बना मसला और गाढ़ा ऊपरी आहार भी शुरू कर देना चाहिए जैसे- कद्दू, लौकी, गाजर, पालक तथा गाढ़ी दाल, दलिया, खिचड़ी आदि। यदि मांसाहारी हैं तो अंडा, मांस व मछली भी देना चाहिए। बच्चे के खाने में ऊपर से 1 चम्मच घी, तेल या मक्खन मिलाएं।बच्चे के खाने में नमक, चीनी और मसाला कम डालें। प्रारंभ में बच्चे का भोजन एक खाद्य पदार्थ से शुरू करें, धीरे-धीरे खाने में विविधता लाएं। बच्चे का खाना रूचिकर बनाने के लिए अलग-अलग स्वाद व रंग शामिल करें। बच्चे को बाजार का बिस्कुट, चिप्स, मिठाई, नमकीन और जूस जैसी चीजें न खिलाएं। इससे बच्चे को सही पोषक तत्व नहीं मिल पाते।
3) एनीमिया की रोकथाम- स्वस्थ शरीर और तेज दिमाग के लिए एनीमिया की रोकथाम करें। सभी उम्र के लोगों में एनीमिया की जांच और पहचान किया जाना महत्वपूर्ण होता है, ताकि व्यक्ति की हीमोग्लोबिन के स्तर के अनुसार उपयुक्त उपचार प्रारंभ किया जा सके। एनीमिया की रोकथाम के लिए आयरन युक्त आहार खाएं जैसे- दालें, हरी पत्तेदार सब्जियां, पालक, मेथी, फल, दूध, दही, पनीर आदि। यदि मांसाहारी है तो, अंडा, मांस व मछली का भी सेवन करें। खाने में नींबू, आंवला, अमरूद जैसे खट्टे फल शामिल करें, जो आयरन के अवशोषण में मदद करते हैं। साथ ही आयरन युक्त पूरक लें। आयरन युक्त पूरक प्रदान करने के लिए 6-59 माह के बच्चे को हफ्ते में 2 बार 1 मिली. आई.एफ.ए. सिरप,5-9 वर्ष की उम्र में आई.एफ.ए की एक गुलाबी गोली,10-19 वर्ष तक की उम्र में हफ्ते में एक बार आई.एफ.ए की नीली गोली,गर्भवती महिला को गर्भावस्था के चौथे महीने से रोजाना 180 दिन तक आई.एफ. ए की एक लाल गोली,धात्री महिला को 180 दिन तक आई.एफ.ए की एक लाल गोली और कृमिनाश के लिए कीड़े की दवा (एल्बेण्डाजोल) की निर्धारित खुराक दी जाती है। आंगनबाड़ियों और स्वास्थ्य केन्द्रों के माध्यम से यह खुराक बच्चे को दिलाई जानी चाहिए।
इसके साथ ही प्रसव के दौरान कुछ सावधानियां भी जरूरी हैं जैसे कि स्वास्थ्य संस्थाएं जन्म के पश्चात बच्चे की गर्भनाल 3 मिनट बाद ही काटें। इससे नवजात बच्चे के खून में आयरन की मात्रा बनी रहती है।
4) डायरिया का प्रबंधन- स्वस्थ शरीर और कमजोरी से बचाव के लिए डायरिया का प्रबंधन जरूरी है। इसके लिए व्यक्तिगत साफ-सफाई, घर की सफाई, आहार की स्वच्छता का ध्यान रखें और डायरिया से बचाव के लिए हमेशा स्वच्छ पानी पिएं। माताएं 6 माह तक बच्चे को केवल स्तनपान ही करवाएं। कोई और खाद्य पदार्थ यहां तक पानी भी नही दें क्योंकि वह भी बच्चे में डायरिया का कारण बन सकता है। डायरिया होने पर भी मां स्तनपान नहीं रोके बल्कि बार-बार स्तनपान करवाएं। शरीर को दोबारा स्वस्थ बनाने के लिए 6 माह से बड़े बच्चे को ऊपरी आहार के साथ बार-बार स्तनपान करवाएं। बच्चे को डायरिया होने पर तुरंत ओ.आर.एस. तथा अतिरिक्त तरल पदार्थ दें और जब तक डायरिया पूरी तरह ठीक न हो जाए तब तक जारी रखें। डायरिया से पीड़ित बच्चे को डॉक्टर की सलाह पर 14 दिन तक जिंक दें, अगर दस्त रूक जाए तो भी यह देना बंद नहीं करें।
5) स्वच्छता और साफ-सफाई- स्वास्थ्य और सफाई का हमेशा साथ रहा है। गंदगी कई बीमारियों का खुला निमंत्रण होती है। इसलिए अपनी स्वच्छता सुनिश्चित करें।हमेशा साफ बर्तन में ढक कर रखा हुआ शुद्ध पानी पिएं, बर्तन को ऊंचे स्थान पर लंबी डण्डी वाली टिसनी के साथ रखें। हमेशा खाना बनाने, स्तनपान से पहले, बच्चे को खिलाने से पहले, शौच के बाद और बच्चे के मल के निपटान के बाद साबुन और पानी से हाथ आवश्य धोएं। बच्चे को खाना खिलाने से पहले बच्चे के हाथों को साबुन और पानी से जरूर धोएं। शौच के लिए हमेशा शौचालय का उपयोग ही करें। किशोरियां और महिलाएं माहवारी के दौरान व्यक्तिगत साफ-सफाई का ध्यान रखें।