चीन-रूस के बीच घिरे मंगोलिया की US से यारी खतरे में, कब तक टालेगा तीसरी कोल्ड-वॉर?
33 लाख की आबादी वाला यूरेशिया में अमेरिका, चीन और रूस के बीच प्रभुत्व की लड़ाई में फंसा हुआ रहा है। पिछले महीने रूस के उप विदेश मंत्री इगोर मॉर्गुलोव ने कहा था कि अगर मंगोलिया शंघाई कोऑपेशन ऑर्गनाइजेशन (SCO) का सदस्य बनने के लिए आवेदन देता है तो मॉस्को उसका समर्थन करेगा। हालांकि, उन्होंने साथ ही यह भी कह डाला कि रूस मंगोलिया पर दोस्त चुनने के लिए असर डालने की कोशिश नहीं कर रहा है। ऐसे में मंगोलिया अप्रत्यक्ष रूप से तीन सुपरपावर्स की लड़ाई में अहम जगह पर खड़ा है।
मंगोलिया को डर, पश्चिम विरोधी न मान लिया जाए
एक ओर चीन और एक ओर रूस से घिरा मंगोलिया पहले यूरेशिया के राजनीतिक, आर्थिक और सुरक्षा गठबंधन का हिस्सा बनने की इच्छा जाहिर कर चुका है। हालांकि, चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव के बीच वह चुप्पी साधे है। साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट के मुताबिक ऐसा माना जा रहा है वह फिलहाल SCO के मुद्दे को भी किनारे ही रख रहा है। जानकारों का मानना है कि मंगोलिया को डर है कि उसे पश्चिम विरोधी समूह के साथ समझा जाएगा और अपनी सुरक्षा मामलों को लेकर वह काफी सतर्क है।
‘तीसरा कोल्ड-वॉर नहीं चाहता’
कनाडा के एशिया पैसिफिक फाउंडेशन में पोस्टग्रैजुएट रिसर्च फेलो मेंडी जरगलसैकन के मुताबिक कुछ मंगोल कोल्ड-वॉर जैसी भौगौलिक राजनीति में नहीं पड़ना चाहते हैं। उन्हें पहले चीन बनाम सोवियत संघ और अमेरिका बनाम सोवियत संघ के बीच लड़ाई में फंसने का अनुभव याद है। कोल्ड-वॉर के दौरान मंगोलिया सोवियत यूनियन का सैटलाइट स्टेट था। उसका अमेरिका से सीधा संपर्क नहीं था। अमेरिका के साथ उसके संबंध 1987 में बने। वहीं, 1960 में चीन और सोवियत यूनियन के बीच टकराव से मंगोलिया और चीन के संबंधों में खटास आग गई। इससे देश को लगने लगा कि दूसरे देशों के साथ उसके संबंधों पर उसका खुद का नियंत्रण है ही नहीं। इसका असर आज तक उसके कूटनीतिक संबंधों पर पड़ता है।
‘भारत, जापान, US, EU से दोस्ती’
दशकों से अपने संबंधों को तैयार करने के बाद अब मंगोलिया ऐसी गुटबाजी से दूर रहना चाहता है जिससे पश्चिम के साथ उसके संबंध खराब होने का खतरा हो। मेंडी का कहना है कि SCO की छवि पश्चिम-विरोधी है। इसलिए मुश्किल है कि मंगोलिया उसमें शामिल होने के रूस के प्रस्ताव को स्वीकार करे। एक्सपर्ट्स की राय है कि मंगोलिया रूस और चीन के अलावा दूसरे देशों के साथ भी संबंध बनाना चाहता है। इसके लिए वह जापान, अमेरिका, यूरोपियन यूनियन, भारत और दक्षिण कोरिया को अपने ‘तीसरे पड़ोसी’ के तौर पर देखता है।
‘US और चीन, दोनों को चुनौती देना चाहता है रूस’
जानकारों का कहना है कि रूस मंगोलिया को अपने खेमे में शामिल करके चीन और अमेरिका, दोनों के असर को कम करना चाहता है। वहीं, यह भी कहा जाता है कि रूस SCO का विस्तार करना चाहता है। हालांकि, मंगोल समाज में राय यही है कि SCO में शामिल होना उनकी प्राथमिकता नहीं है और उसे यथास्थिति पर डटे रहना चाहिए। उसे पता है कि SCO के केंद्र में आतंकवाद और क्षेत्रीय सुरक्षा का मुद्दा अहम है, लेकिन इनके अलावा भी कई मुद्दे हैं और ऐसे में उत्तर अमेरिका, यूरोप और एशिया के पार्टनर्स के बीच चिंता पैदा हो सकती है।
‘चीन को डर, मंगोलिया के सहारे लोकतंत्र का न हो प्रसार‘
दूसरी ओर मंगोलिया के पश्चिम के साथ संबंधों को देखते हुए चीन भी चाहता है कि मंगोलिया SCO में शामिल हो जाए। चीन को डर है कि कहीं मंगोलिया के सहारे इस क्षेत्र में लोकतंत्र को फैलाने की कोशिश न की जाए। चीन और रूस से अलग मंगोलिया में राष्ट्रपति का पद तय है और संसदीय व्यवस्था के तहत जनप्रतिनिधि चार साल के लिए चुने जाते हैं। ऐसे में वह एक लोकतांत्रित देश माना जाता है। हालांकि, भ्रष्टाचार के आरोपों से यहां की व्यवस्था भी अछूती नहीं है। देश का एक तबका ऐसा भी है जो सोचता है कि कहीं विदेश नीति को लेकर इतना ज्यादा सोच-विचार करने की वजह से मंगोलिया पिछड़ तो नहीं रहा है।
अब अमेरिका को भी SCO की चिंता
वहीं, वॉशिंगटन इस बात को लेकर चिंतित है कि अगर मंगोलिया ने SCO में शामिल होने का फैसला कर लिया तो उसके लोकतंत्र का क्या होगा। पहले US SCO को लेकर ज्यादा ध्यान नहीं देता था लेकिन चीन के बढ़ते प्रभाव के कारण अब वह सतर्क है। ऐसे में अगर मंगोलिया ने SCO का हाथ थाम लिया तो चीन से लड़ाई में अमेरिका के लिए झटका होगा।