नीतीश की जरूरत बन गए हैं प्रशांत किशोर!
बिहार में सत्ताधारी जनता दल युनाइटेड (जेडीयू) के उपाध्यक्ष (पीके) इन दिनों राज्य की सियासत में सबसे चर्चित चेहरा बने हुए हैं। नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के मुद्दे पर पार्टी के फैसले के विरोध में अपनी राय रखने वाले किशोर बीजेपी के वरिष्ठ नेता और उप मुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी के खिलाफ बयान देने के बाद भी बिहार के मुख्यमंत्री की आंखों के तारा बने हुए हैं।
बिहार की सियासत में अब कहा जाने लगा है कि पीके नीतीश की मजबूरी हैं क्योंकि उन्हीं के जरिए नीतीश कई रणनीति पर काम कर रहे हैं। सूत्रों का कहना है कि सीएए व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) पर शांत रहना जेडीयू अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है।
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से छवि को खतरा
संसद में नागरिकता संशोधन विधेयक (सीएबी) के समर्थन के बावजूद एनआरसी के विरोध में खड़ी जेडीयू आज भी बीजेपी की सहयोगी बनी हुई है। जेडीयू के एक नेता ने कहा, ‘जेडीयू की धर्मनिरपेक्ष छवि को सीएए के समर्थन के साथ गंभीर रूप से खतरा था। पार्टी आरजेडी और कांग्रेस को बिहार में 17 फीसदी मुस्लिम वोटों का एकमात्र दावेदार बनने का मौका नहीं दे सकती।’
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सभी दलों के साथ रहे हैं संबंध
राजनीतिक जानकार और पटना के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह भी कहते हैं कि पीके एक कुशल रणनीतिकार माने जाते हैं, जिसे किशोर ने साबित भी किया है, जिसका लाभ नीतीश उठाना चाहते है। उन्होंने कहा कि इसके अलावे पीके के संबंध सभी दलों के साथ रहे हैं। नीतीश को मालूम है कि जब भी उन्हें बीजेपी से अलग होकर वैकल्पिक राजनीति की जरूरत होगी, तब पीके के उन्हीं संबधों की खास जरूरत होगी, ऐसे में पीके नीतीश की जरूरत बने हुए हैं।
प्रशांत किशोर नीतीश को भी जेडीयू की ‘धर्मनिरपेक्ष छवि’ की याद दिलाते रहे हैं। पीके के अलावा पवन वर्मा और गुलाम रसूल बलयावी ने भी सीएए का समर्थन करने को लेकर पार्टी नेतृत्व के खिलाफ बयान दे चुके हैं, पार्टी नेतृत्व ने फिर भी कोई कार्रवाई नहीं की।