समुद्री ताकत बढ़ाने को नौसेना का न्यूक्लियर प्लान

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नई दिल्ली 18 पारंपरिक और छह परमाणु क्षमता से लैस पनडुब्बियों का एक बेड़ा तैयार करने की योजना बना रहा है। रक्षा पर संसद की स्थाई समिति ने संसद के शीत सत्र में सदन के पटल पर एक रिपोर्ट रखी। इसमें कहा गया है, ’18 (पारंपरिक) और छह एसएसएन (परमाणु हमले की क्षमता से युक्त) पनडुब्बियों की योजना है लेकिन 15 पारंपरिक और एक एसएसएन की मौजूदा क्षमता लीज पर उपलब्ध है।’ भारत के पास दो भी है- आईएनएस चक्र और आईएनएस अरिहंत। जानकार पनडुब्बियों के मामले में चीन को भारत से आगे मानते हैं।

इंडियन नेवी ने अरिहंत क्लास एसएसबीएन के अलावा छह न्यूक्लियर अटैक सबमरीन्स बनाने की योजना बनाई है। अरिहंत एक परमाणु हमले की क्षमता से युक्त एसएसबीएन पनडुब्बी है जो जिसमें न्यूक्लियर मिसाइल लगे हैं। न्यूक्लियर अटैक सबमरीन्स का निर्माण देश में ही किए जाने की योजना है जिसके लिए निजी क्षेत्र की कंपनियों के साथ साझेदारी की जाएगी।

भारतीय नौसेना अभी कन्वेंशनल डोमेन में रूसी मूल की किलो क्लास, जर्मन मूल की एचडब्ल्यूडी क्लास और आधुनिक फ्रेंच स्कॉर्पीन क्लास सबमरीन्स का इस्तेमाल कर रही है। वहीं, न्यूक्लियर सेक्शन में एक आईएनएस चक्र है जो रूसी मूल की अकूला क्लास का जहाज है। नेवी ने स्टैंडिंग कमिटी को यह भी बताया कि पिछले 15 वर्षों में सिर्फ दो नई पारंपरिक पनडुब्बियां ही बेड़े में शामिल हुईं जिनमें एक स्कॉर्पीन क्लास का जहाज आईएनएस कलवरी है जबकि दूसरा आईएनएस खंडेरी। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘नेवी ने बताया कि मौजूदा 13 कन्वेंशनल सबमरीन्स 17 से 31 वर्ष पुरानी है।’

नेवी अपने प्रॉजेक्ट 75 के तहत छह नई सबमरीन्स बनाने की योजना पर काम कर रही है। भारतीय नौसेना छह पारंपरिक पनडुब्बियों का निर्माण भारतीय कंपनियों और विदेशी मूल की उपकरण निर्माताओं के साथ साझेदारी में करेगी। यह प्रॉजेक्ट स्ट्रैटिजिक पार्टनरशिप पॉलिसी के तहत संचालित होगा। भारतीय नौसेना के बेड़े में पहली स्वदेशी पनडुब्बी ‘कलवरी’ 14 दिसंबर, 2017 को शामिल की गई थी। ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के तहत देश में डिफेंस प्रॉडक्शन के मद्देनजर यह एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।

देश में पनडुब्बियां बनाने का प्लान 1999 में तैयार किया गया था। तब 30 साल का रोडमैप तैयार हुआ था जिसके तहत 2029 तक 24 पनडुब्बियां बनाने की योजना थी। इसके पहले प्रॉजेक्ट पी-75 के तहत स्कॉर्पीन सीरीज की छह पनडुब्बियां बनाई जा रही हैं। 2005 से यह प्रॉजेक्ट चलाया जा रहा है। करीब 23 हजार करोड़ रुपये के इस प्रॉजेक्ट में चार साल की देरी हो चुकी है।

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