उग्रवादी संगठनों के दवाब में कांग्रेसः रविशंकर

उग्रवादी संगठनों के दवाब में कांग्रेसः रविशंकर
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राजीव देशपांडे/ सिद्धार्थ, नई दिल्ली
कांग्रेस ने सत्ता में रहते हुए नागरिकों के लिए नैशल रजिस्टर बनाने के विचार को मंजूरी दी थी और अब राजनीतिक कारणों से इससे दूरी बना रही है। यह कहना है देश के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद का। उन्होंने हमारे सहयोगी अखबार टाइम्स ऑफ को दिए इंटरव्यू में कहा कि असम एनआरसी लिस्ट में जगह नहीं बना पाने वालों को खिलाफ अब तक कोई कानूनी-कार्रवाई शुरू नहीं हुई है। उन्होंने (CAA), नैशनल जनसंख्या रजिस्टर (NPR) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) के अतिसंवेदनशील मुद्दों पर सभी बड़े सवालों के जवाब दिए।

एनपीआर और एनआरसी पर राजनीतिक घमासान मचा हुआ है और इन्हें सीएए के एक्सटेंशन के रूप में देखा जा रहा है। क्या कहेंगे?विडंबना है कि देश पर 55 वर्षों से ज्यादा शासन करने वाली कांग्रेस जनगणना के सुव्यवस्थित संवैधानिक और कानूनी सिद्धातों के पूरी तरह खारिज कर रही है। कांग्रेसी सरकारों ने इस पर सार्वजिक ऐलान कर रखा है, लेकिन आज कांग्रेस वोट बैंक के लिए आक्रामक और उग्रवादी संगठनों के दबाव के आगे समर्पण कर चुकी है। कांग्रेस पार्टी उसी तरह की भाषा बोल रही है।

कौन से संगठन? क्या आप विस्तार से बताएंगे?
पॉप्युल फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI), ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (AIMIM) और उनके सहयोगी संगठन। इनके उग्रवादी रवैये के सामने कांग्रेस हलकान है और वह उनसे वोटबैंक की प्रतिस्पर्धा में जुटी है। हम बातचीत को तैयार हैं, प्रधानमंत्री और गृह मंत्री ने खुद इसकी व्याख्या की है, लेकिन जिस तरह सीएए के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे हैं, सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाया जा रहा है, उससे पर्दे के पीछे से काम कर रही ताकतों इरादा समझ में आता है।

आपने कहा कि हिंसा के पीछे कोई और है। क्या सरकार ने उनकी पहचान की है?
पीएफआई और सिमी भाई-भाई हैं। ये उग्रवादी संगठन अक्सर हिंसा भड़काते रहे हैं। एमआईएम एक गैर-जिम्मेदार पार्टी है जो कांग्रेस को डरा रही है…लेकिन क्या इसका मतलब है कि कांग्रेस जनगणना और एनपीआर के कानूनी पहलुओं को नजरअंदाज करेगी?

एनपीआर का विरोध करने की अपील की जा रही है और इसे एनआरसी से पहले का कदम बताया जा रहा है।
जनगणना का संवैधानिक संदर्भ है। आर्टिकलल 55 कहता है कि (राष्ट्रपति चुनाव में) मतों के मूल्य का आकलन आबादी पर निर्भर है। जनसंख्या का मतलब पिछली जनगणना में दर्ज आबादी से है। आर्टिकल 330 के तहत अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए संसद और विधानसभाओं में सीटें आरक्षित होती हैं। यह भी जनसंख्या आधारित है। इसलिए जनगणना को संविधान की मंजूरी मिली हुई है। देश को अपनी जनसंख्या का पता होना ही चाहिए।

फिर जनगणना कानून के तहत लोगों की गिनती गुप्त रखनी है। फिर जनसंख्या रजिस्टर आता है। इसमें बहुत से आंकड़े होते हैं, मसलन नागरिकों की स्थिति और मकानों का आकार आदि। सिटिजनशिप रूल्स, 2003 दिसंबर 2004 से प्रभावी हुआ जब यूपीए की सरकार थी। इसका सेक्शन 14(A) कहता है कि केंद्र सरकार हरेक व्यक्ति का अनिवार्य पंजीकरण करेगी और उन्हें एक नैशनल आईडी कार्ड देगी। इससे एक एनआरसी मेंटेन होगा। लेकिन केंद्रीय कैबिनेट ने सिर्फ एनपीआर अपडेट करने का फैसला किया है। एनआरसी पर अब तक कोई फैसला नहीं हुआ है। सबको पता होना चाहिए कि एनआरसी नागरिकों के लिए है जबकि कानून के तहत जनसंख्या रजिस्टर देश में रहने वाले हर व्यक्ति के लिए है।

लेकिन एनआरसी की जरूरत क्या है?
यह कानून के तहत करना है। सेक्शन 2(j) कहता है कि भारतीय नागरिकों का राष्ट्रीय रजिस्टर यहां के नागरिकों के लिए ही है। अब सेक्शन 2(1) में जनसंख्या रजिस्टर का मतलब गावों, शहरों और वार्डों में रह रहे लोगों की विस्तृत जानकारी से है। भारत में रह रहे लोगों और भारतीय नागरिकों में मूलभूत अंतर है। आपने नागरिकता कैसे पाई? यह नागरिकता कानून, 1955 में परिभाषित है। फिर असम अकॉर्ड के अधीन आने वालों के लिए 6(A) जोड़ा गया।

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