केबीसी विजेता सुशील कुमार ने सौ महादलित बच्चों को लिया गोद
पटना : सदी के महानायक और बॉलीवुड के महान अभिनेता अमिताभ बच्चन के सामने कभी कौन बनेगा करोड़पति (केबीसी) की हॉट सीट पर पूछे जाने वाले ताबड़तोड़ सवालों का जवाब देकर करोड़पति बनने वाले सुशील कुमार आज बिहार में सौ से अधिक महादलित बच्चों को गोद लेकर क से कबूतर और ख से खरगोश पढ़ा रहे हैं. पूर्वी चंपारण के मोतिहारी स्थित कोटवा प्रखंड के मच्छरगांवा की मुसहर बस्ती में करोड़पति सुशील कुमार के बोल आजकल इन्हीं बच्चों के बीच गूंज रहे हैं. एक छोटे से गांव से उठकर कौन बनेगा करोड़पति की हॉट सीट पर अपना जलवा बिखेरने वाले नामचीन श्ख्स के सामाजिक सरोकार का यह नजारा तब देखने को मिला, जब प्रभात खबर की टीम बीते रविववार को चुपके से मोतिहारी के कोटवा प्रखंड के मुसहर बस्ती में पहुंची.
मीडिया की टीम को वहां पहुंचने के कुछ ही देर में बच्चे 20 तक का पहाड़ा पढ़ने लगे. एक बच्चा पढ़ता और सब दोहराते. इसके बाद पाठ पढ़ने का सिलसिला शुरू हुआ, तो उसे भी बच्चे दोहराने लगे. मेहनत-मजदूरी करके अपना और परिजनों का पेट पालने वालों की इस बस्ती में शिक्षा का उजाला केबीसी विजेता सुशील कुमार की वजह से आ रहा है, जिन्होंने लगभग एक साल पहले इस बस्ती के बच्चों को पढ़ाने का फैसला लिया. इसके लिए दो शिक्षक नियुक्त किये और जब एक बार पढ़ने-पढ़ाने का सिलसिला शुरू हुआ, तो फिर हालात बदलने लगे.
साल भर पहले क, ख, ग नहीं जानेवाले मुसहर बस्ती के बच्चे अब किताब पढ़ने लगे हैं. पढ़ने को लेकर इन बच्चों में लगन है. हर शाम ये पढ़ाई के लिए खुद ही इकट्ठा हो जाते हैं. शिक्षक रवि प्रकाश व शिवनंदन राय के आने से पहले ही बच्चे होमवर्क के बारे में बात करते हैं और जैसे ही शिक्षक पहुंचते हैं, पढ़ाई शुरू हो जाती है. समय-समय पर इन बच्चों की परीक्षा ली जाती है और उसी के मुताबिक हर बच्चे पर शिक्षक मेहनत करते हैं. अब ये बच्चे सरकारी स्कूल में पढ़ने जाने लगे हैं. विभिन्न कक्षाओं में इनका नाम लिखा है.
केबीसी विजेता सुशील को देख उत्साहित हो जाते हैं बस्ती के लोग
केबीसी विजेता सुशील कुमार भी हमारे साथ थे, जिन्हें देख कर बच्चों व बस्तीवालों का उत्साह दोगुना हो गया था. सुशील ने कहा कि हमें जब इस बस्ती के बारे में पता चला था, तब हमने फैसला लिया था कि यहां के बच्चों को हम पढ़ायेंगे. इसके लिए हमने गांधी बचपन सवारो केंद्र बनाया है. उसी के बैनर तले हम इन बच्चों को पढ़ा रहे हैं. हमने इसके बारे में ज्यादा लोगों को नहीं बताया था. हम चाहते थे कि कुछ बदलाव आये, तब हम इसकी बात करें. अब जो बदलाव आया है, आप खुद देख सकते हैं.
घोंघा-केंकड़ा बिनना छोड़ बच्चों के हाथ में आ गयी कॉपी-किताब
बस्ती की महिलाएं बताती हैं कि साल भर पहले हमारे बच्चे दिन भर केकड़े व घोंघा चुनने का काम करते थे. हम लोग मजदूरी के लिए चले जाते थे और शाम में जब लौटते, तो उन्हीं केंकड़ों व घोंघे की सब्जी बनाते थे, लेकिन अब हमारे बच्चे कॉपी, किताब, पेंसिल के साथ दिन बिता रहे हैं. लक्ष्मण मांझी व तेतरी देवी कहती हैं कि अब बस्ती के सब बच्चे पढ़ने लगे हैं. शराब बंदी के बाद और बदलाव आया है.
केबीसी में पांच करोड़ जीतने के बाद सुशील कुमार अचानक देश ही नहीं, बल्कि विश्व भर में चर्चित हो गये थे. मनरेगा के डाटा ऑपरेटर से केबीसी के विजेता का सफर तय करनेवाले सुशील अब पीएचडी कर रहे हैं. समाज के जरूरत मंद लोगों की मदद में इन्हें अच्छा लगता है, लेकिन इसके बारे में ज्यादा प्रचार नहीं करते. वह कहते हैं कि शिक्षा से ही समाज बदल सकता है. इसलिए हमारा नारा होना चाहिये, पढ़ेंगे, पढ़ायेंगे और शिक्षा का अलख जायेंगे.
पेंसिल पा रंजू की खुशी का ठिकाना नहीं रहा
कलावती व रंजू जैसी बच्चियां साल भर पहले ये नहीं जानती थीं कि पढ़ाई क्या होती है. स्कूल में क्या और क्यों पढ़ाया जाता है, लेकिन अब जब रंजू को नयी पेंसिल दी जाती है, तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं रहता. वह लिखने बैठ जाती है और फर्राटे से पहाड़ा सुनाने लगती है. क से ज्ञ तक पढ़ और लिख लेती है. पाठ पढ़ना भी सीखने लगी है.
अचल ने दी कॉपी-किताब
रविवार को स्टेट बैंक से चीफ मैनेजर अचल अभिषेक भी सुशील कुमार के साथ मुसहर बस्ती पहुंचे थे. हाल ही में पटना से ट्रांसफर होकर मोतिहारी पहुंचे अचल ने कहा कि जब हमें सुशील के इस काम के बारे में पता चला, तो हम खुद को नहीं रोक पाये. अचल अपने साथ कॉपी-किताब व बच्चों के लिए टॉफियां लेकर पहुंचे थे. नयी किताब व कॉपी मिलने से बच्चे प्रसन्न थे.
…और तब बदल जायेगा समाज
सुशील कहते हैं कि अभी बच्चे पढ़ रहे हैं, लेकिन अगले चार-पांच साल बाद जब ये बच्चे बड़ी कक्षाओं में जायेंगे और पढ़ाई के महत्व के बारे में जानेंगे, तब ये अपने आसपास के बच्चों को भी पढ़ने के लिए प्रेरित करेंगे. इससे मुसहर समाज में बड़ा बदलाव आयेगा, क्योंकि अशिक्षा के कारण अभी तक ये लोग जिस तरह से रह रहे हैं, वो समाज में स्वच्छता का सपना देखनेवाली सरकार के पैमाने पर खरे नहीं उतरते हैं.
एक और बस्ती को लेंगे गोद
सुशील कुमार कहते हैं कि अगर हमें मच्छरगांवा में सफलता मिली और यहां के बच्चों का जीवन बदलने में हम कामयाब रहेंगे, तो किसी और मुसहर बस्ती के बच्चों को पढ़ाने का काम हम शुरू करेंगे, ताकि वहां के बच्चे भी दुनिया के सामने अपनी प्रतिभा दिखा सकें.