किस मिनिस्ट्री को मिले असम राइफल्स का कंट्रोल?
का पूरा कंट्रोल किसे दिया जाए इसे लेकर और में विवाद चल रहा है। जहां गृह मंत्रालय चाहता है कि इसका पूरा कंट्रोल उनके के पास होना चाहिए वहीं इंडियन इस प्रस्ताव के विरोध में हैं। सूत्रों के मुताबिक, इसे लेकर अगले हफ्ते असम राइफल्स के डीजी गृह मंत्री से मुलाकात भी कर सकते हैं। अभी नॉर्थ ईस्ट में तैनात असम राइफल्स का प्रशासनिक कंट्रोल गृह मंत्रालय के पास है जबकि ऑपरेशनल कंट्रोल आर्मी देखती है। 19 नवंबर को दिल्ली हाई कोर्ट में भी इस मसले पर सुनवाई होनी है। असम राइफल्स एक्स सर्विसमैन वेलफेयर असोसिएशन ने एक अपील दायर की है जिसमें कहा गया है कि असम राइफल्स से दोहरा कंट्रोल हटना चाहिए।
क्या है प्रस्ताव और सेना के विरोध की वजह
हाल ही में कैबिनेट कमिटी ऑन सिक्यॉरिटी (सीसीएस) का एक नया ड्राफ्ट आया है जिसमें गृह मंत्रालय का कहना है कि असम राइफल्स का पूरा कंट्रोल गृह मंत्रालय को दिया जाए। इस ड्राफ्ट में कहा गया है कि आर्मी कंपनी ऑपरेटिंग ग्रुप की तरह काम करती है यानी एक कंपनी बेस से ऑपरेट करती है जबकि बॉर्डर रखवाली के लिए नाका सिस्टम जैसा इंतजाम होना चाहिए। जबकि आर्मी का कहना है कि नॉर्थ ईस्ट में जिस तरीके की भौगोलिक स्थितियां हैं वहां नाका सिस्टम सही साबित नहीं होगा क्योंकि छोटे-छोटे ग्रुप होने पर इंसर्जेंट (उग्रवादी) उन पर हावी हो सकते हैं। एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, ड्राफ्ट में यह भी साफ नहीं किया गया है कि फिर काउंटर इंसर्जेंसी ग्रिड कैसे मैनेज होगा।
असम राइफल्स और आर्मी का साथ क्यों है अहम
आर्मी के एक सीनियर अधिकारी के मुताबिक, जिस तरह राष्ट्रीय राइफल (आरआर) का रोल कश्मीर में अहम है उसी तरह असम राइफल्स का रोल नॉर्थ ईस्ट में है। कंवेंशनल वॉर (पारंपरिक युद्ध) के लिए यह जरूरी है। जैसे कश्मीर में आरआर काउंटर इंसर्जेंसी ऑपरेशन में शामिल होती है लेकिन इसका स्ट्रक्चर ऐसा नहीं है कि यह पारंपरिक युद्ध लड़ सके। इसलिए जब युद्ध की नौबत आती है तो आरआर डिफेंसिव फोर्स में तब्दील हो जाती है और दुश्मन से निपटने की पूरी जिम्मेदारी आर्मी देखती है। आरआर की तरह की ही भूमिका नॉर्थ ईस्ट में असम राइफल्स की है।
ट्रेनिंग भी आर्मी की तरह
असम राइफल्स के जवानों की अभी 44 हफ्तों की ट्रेनिंग होती है। इसमें 28 हफ्ते उन्हें बेसिक मिलिट्री ट्रेनिंग दी जाती है। यह आर्मी के इंफ्रेंटी (पैदल सेना) जवानों को दी जाने वाली ट्रेनिंग की तरह है। इसमें कन्वेंशनल ऑपरेशनल ट्रेनिंग होती है। जिसमें बताया जाता है कि कैसे डिफेंस की लड़ाई होगी और कैसे घात लगाकर हमला होता है। दो हफ्ते काउंटर इंसरजेंसी (सीआई) ऑपरेशन की और तीन हफ्ते का सीआई ऑपरेशनल कैंप भी होता है। जबकि पैरा मिलिट्री में इस तरह की ट्रेनिंग नहीं होती। उनकी ट्रेनिंग ज्यादातर पुलिस स्टाइल की होती है। आर्मी के एक अधिकारी के मुताबिक असम राइफल्स के ट्रेंड जवानों का पूरा इस्तेमाल आर्मी में ही हो सकता है।
Source: National