श्रीलंका में नवंबर में चुनाव, भारत की नजर क्यों
पड़ोसी देश श्रीलंका में अगले महीने होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव पर भारत की पैनी नजर है। यहां चीन समर्थक गोटाबाया राजपक्षे का देश के हाउजिंग मिनिस्टर और सत्तारूढ़ यूनाइटेड नैशनल पार्टी के साजिथ प्रेमदासा से मुकाबला है। इस चुनाव के नतीजे दक्षिणी में भारत की मौजूदगी के लिहाज से अहम हैं। दरअसल, श्रीलंका के नेता भारत और चीन को संतुलित करने की रणनीति अपनाते रहे हैं।
श्रीलंका के राजनीतिक इतिहास में पहली बार है जब कोई भी मौजूदा राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री या विपक्षी नेता देश के सबसे बड़े पद के लिए चुनाव नहीं लड़ रहा है। वैसे तो कई उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं लेकिन मुख्य मुकाबला प्रेमदासा और श्रीलंका पोडुजना पेरामुना के नेता व पूर्व रक्षा मंत्री गोटाबाया के बीच माना जा रहा है। गोटाबाया पूर्व राष्ट्रपति और चीन की तरफ झुकाव रखने वाले महिंदा राजपक्षे के भाई हैं। आपको बता दें कि इस समय श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के मैत्रीपाला सिरिसेना देश के राष्ट्रपति और यूनाइटेड नैशनल पार्टी के रानिल विक्रमसिंघे प्रधानमंत्री हैं।
2015 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पहली बार श्रीलंका गए थे। उसके बाद श्रीलंका में भारत का एंगेजमेंट हर सेक्टर में बढ़ा है। पोर्ट से लेकर एविएशन और रेलवे तक में भारत का प्रभाव देखा जा सकता है। हालांकि सिरिसेना और विक्रमसिंघे दोनों देश में चीन की मौजूदगी को भी बैलेंस करना चाहते हैं।
चुनाव पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों ने हमारे सहयोगी अखबार ET को बताया कि वैसे राजपक्षे एक हाई-प्रोफाइल कैंडिडेट हैं लेकिन प्रेमदासा एक ‘डार्क हार्स’ के तौर पर उभर सकते हैं। वह लो प्रोफाइल रहते हैं और ग्रामीण क्षेत्रों और अल्पसंख्यकों में उनकी अच्छी पकड़ है। अब तक वह किसी भी विवाद में नहीं घिरे।
श्रीलंका के तीसरे राष्ट्रपति राणासिंहे की 1993 में हत्या कर दी गई थी। उनके बेटे साजिथ के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने कोलंबो एलीट से दूर खुद को जनता के नेता के तौर पर स्थापित किया है। जानकारों का कहना है कि उनकी जाति अतिरिक्त वोट पाने में मदद कर सकती है। श्रीलंका में 1.6 करोड़ वोटर्स पंजीकृत हैं।
Source: International