बाकी मुस्लिम पक्षकार बोले- समझौता मंजूर नहीं
अयोध्या विवाद में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई पूरी हो चुकी है और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है। 17 नवंबर के पहले कभी भी अदालत देश के सबसे पुराने विवाद में अपना फैसला सुना सकती है। इस बीच मुस्लिम पक्षकारों ने बयान जारी करते हुए कहा कि सुन्नी वक्फ बोर्ड के अलावा हमें किसी तरह का समझौता मंजूर नहीं है। पक्षकारों ने मध्यस्थता पैनल के सामने हुई बातों को जान-बूझकर लीक किए जाने का भी आरोप लगाया है।
मुस्लिम पक्षकारों का कहना है, ‘अभी हम समझौते के लिए तैयार नहीं हैं। सुप्रीम कोर्ट में मामला अंतिम दौर में है। सुन्नी वक्फ बोर्ड के अलावा, किसी मुस्लिम पक्षकार को समझौता मंजूर नहीं। मध्यस्थता पैनल के सामने हुई समझौते की बातें जानबूझकर लीक की गईं।’
‘मध्यस्थता के लिए अपनाई प्रक्रिया करते हैं खारिज’
मुस्लिम पक्षकारों की तरफ से छह प्रतिनिधियों ने संयुक्त बयान जारी करते हुए कहा, ‘सुन्नी वक्फ बोर्ड के अलावा किसी पक्ष को समझौता मंजूर नहीं है। समझौते की शर्तें जो लीक हुई हैं, वह हमें मंजूर नहीं हैं। इसके साथ ही मध्यस्थता के लिए अपनाई प्रक्रिया को भी हम खारिज करते हैं। समझौते के लिए जमीन पर दावा वापस लेने की शर्त हमें मंजूर नहीं है।’
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इस बीच बाबरी मस्जिद ऐक्शन कमिटी के संयोजक और मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता जफरयाब जिलानी ने विश्वास जताया है कि कोर्ट का फैसला उनके हक में आएगा। उन्होंने कहा कि जिस नक्शे को सुप्रीम कोर्ट में फाड़ा गया, वह 1986 में प्रकाशित किताब का है, जिसे सुप्रीम कोर्ट भी नहीं मानता है।
सीजेआई 17 नवंबर को होंगे रिटायर
सीजेआई अगले महीने 17 नवंबर को रिटायर होने वाले हैं, ऐसे में माना जा रहा है कि उससे पहले अयोध्या मामले में फैसला आ सकता है। बुधवार को शाम चार बजे अयोध्या मामले पर लगातार 40 दिन तक चली सुनवाई पूरी हो गई। सीजेआई की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने संबंधित पक्षों को ‘मोल्डिंग ऑफ रिलीफ’ पर लिखित नोट रखने के लिए 3 दिन का अतिरिक्त समय दिया है।
हिंदू महासभा के वकील ने पेश किया था रामजन्मभूमि का पुराना नक्शा
सुनवाई के 40वें दिन अखिल भारतीय हिंदू महासभा की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील ने एक किताब व कुछ दस्तावेज के साथ विवादित भगवान राम के जन्म स्थान की पहचान करते हुए एक नक्शा जमा किया। मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील ने दस्तावेज के रेकॉर्ड में नहीं होने की बात कहते हुए आपत्ति जताई। अदालत में दस्तावेज को फाड़ने की 5 जजों की बेंच से अनुमति मांगते हुए धवन ने कहा, ‘क्या, मुझे इस दस्तावेज को फाड़ने की अनुमति है….यह सुप्रीम कोर्ट कोई मजाक नहीं और इसके बाद उन्होंने दस्तावेज के टुकड़े-टुकड़े कर दिए।’
इलाहाबाद हाई कोर्ट के फैसले को दी गई है चुनौती
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 30 सितंबर 2010 को विवादित 2.77 एकड़ जमीन को सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और रामलला विराजमान के बीच बराबर-बराबर बांटने का आदेश दिया था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले के खिलाफ 14 याचिकाएं दायर की गईं थीं। शीर्ष अदालत ने मई 2011 में हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के साथ विवादित स्थल पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।
Source: National