अगर सुन्नी वक्फ बोर्ड छोड़ दे दावा क्या होगा?
अयोध्या में रामजन्म भूमि-बाबरी मस्जिद विवाद को सुलझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट की तरफ से नियुक्त तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति ने आज अपनी रिपोर्ट सौंप दी। चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ में आज की सुनवाई का 40वां और आखिरी दिन है। कहा जा रहा है कि अयोध्या केस का एक प्रमुख पक्षकार यूपी ने मध्यस्थता समिति को एक चिट्ठी लिखकर विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर अपना दावा छोड़ने की बात कही है। दावा यह किया जा रहा है कि वक्फ बोर्ड विवादित 2.77 एकड़ जमीन पर बनवाने पर सहमत है, बशर्ते सरकारा अपने खर्च पर मुसलमानों की मस्जिद के लिए पर्याप्त जमीन उपलब्ध करवा दे।
ऐसे में सबसे बड़ा सवाल उठता है कि अगर सुन्नी वक्फ बोर्ड को लेकर दावे सहीं हैं और अगर बोर्ड विवादित जमीन से हटने को तैयार है तो क्या हिंदुओं के लिए राम मंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो जाएगा? क्या सुन्नी वक्फ बोर्ड के अयोध्या केस से पीछे हटते ही सारा विवाद सुलझ जाएगा? इसका जवाब ढूंढने के लिए कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों पर विचार करना जरूरी है…
1. अयोध्या केस में अकेले यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ही मुस्लिम पक्षकार नहीं है। उसके अलावा भी छह अन्य मुस्लिम पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में दावा ठोंक रखा है।
2. अगर यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड सुप्रीम कोर्ट के सामने अयोध्या केस में अपनी दावेदारी वापस लेने की मंशा प्रकट करता है तो बाकी 6 मुस्लिम पक्षकार उसका विरोध करेंगे। ऐसे में मुस्लिम पक्ष के बीच ही आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो जाएगा।
3. हां, यह बात भी सही है कि वक्फ की अपील से विवादित जमीन पर बाकी मुस्लिम पक्षकारों का दावा कहीं-न-कहीं कमजोर पड़ जाएगा।
4. सूत्रों के मुताबिक, विवादित जमीन पर राम मंदिर निर्माण के लिए मुस्लिम पक्ष की एक शर्त यह भी है कि अब देश के किसी भी कोने में धार्मिक स्थलों की स्थिति में कोई बदलाव नहीं किया जाए। मुस्लिम पक्ष की मांग होगी कि धार्मिक स्थल कानून, 1991 को लागू करते हुए देशभर में धार्मिक स्थलों की स्थिति 1947 जैसी ही कायम रखी जाए।
5. एक तथ्य यह भी है कि अगर शेष छह मुसलमान पक्षकार भी वक्फ बोर्ड के ऑफर पर सहमत हो जाते हैं तो क्या सारे हिंदू पक्षकार भी इसे मान लेंगे?
6. वक्फ बोर्ड के ऑफर में सरकार का भी जिक्र है। ऐसे में अगर तमाम हिंदू-मुस्लिम पक्ष इस ऑफर पर तैयार हो भी जाएं तो क्या सरकार मस्जिद के खर्चे के लिए तैयार होगी?
7. आखिर में पूरा दारोमदार सुप्रीम कोर्ट पर है। सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट सुनवाई के 40 दिनों की गहन मशक्कत के बाद इस तरह के ऑफर में दिलचस्पी दिखाने को तैयार होगा? क्या नए ऑफर पर आगे बढ़ने से अयोध्या मामले में अंतिम निर्णय पर पहुंचने में देरी नहीं होगी? और क्या सुप्रीम कोर्ट इस निर्णय में किसी तरह की लेट-लतीफी की इजाजत देगा?
ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि चीफ जस्टिस रंजन गोगोई सुनवाई और फैसले की समयसीमा पर बेहद सख्त दिख रहे हैं। उन्होंने मंगलवार को भी कहा कि 40वें दिन के अलावा एक दिन भी सुनवाई नहीं होगी। संविधान पीठ यह भी स्पष्ट कर चुकी है कि मामले में पक्षकारों के अलावा किसी को भी नहीं सुना जाएगा।
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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज एफ एम आई कलिफुल्ला की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय मध्यस्थता समिति में मध्यस्थता विशेषज्ञ श्रीराम पांचू और आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर शामिल हैं। मेडिएशन पैनल ने अगस्त महीने में सप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह विभिन्न पक्षों के बीच मध्यस्थता के जरिए एकराय कायम करने में नाकामयाब रही है। इसके बाद चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने रोजाना आधार पर सुनवाई शुरू कर दी जिसका आज आखिरी दिन है। अयोध्या केस की सुनवाई के लिए गठित कंस्टिट्यूशन बेंच के अन्य सदस्य जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस अशोक भूषण और जस्टिस एस ए नजीर शामिल हैं।
Source: National