अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा तुम इस देश को शांति से नहीं रहने देना चाहते
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या में गैरविवादित अधिग्रहीत भूमि पर स्थिति मंदिर में पूजा की इजाजत मांगने वाली याचिका शुक्रवार को नाराजगी के साथ खारिज करते हुए याचिकाकर्ता से कहा ‘तुम इस देश को शांति ने नहीं रहने देना चाहते। हमेशा कोई न कोई कुरेदने चला आता है। जबकि मध्यस्थता प्रक्रिया चल रही है।’ इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा याचिकाकर्ता पर लगाया गया पांच लाख रुपये का जुर्माना भी हटाने से इंकार कर दिया।
हालांकि बताते चलें कि इस याचिका और मामले का अयोध्या राम जन्मभूमि पर मालिकाना हक के मुख्य मुकदमे से कोई लेना-देना नहीं है। मुख्य मामले में कोर्ट ने तीन मध्यस्थों की कमेटी बनाई है जो आजकल पक्षकारों के बीच बातचीत के जरिये सहमति और सुलह से विवाद सुलझाने का प्रयास कर रही है। मुख्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के सामने कुल 14 अपीलें लंबित हैं जिनमें राम जन्मभूमि को तीन बराबर हिस्सों में बांटने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के सितंबर 2010 के फैसले को चुनौती दी गई है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश से फिलहाल मामले में यथास्थिति कायम है।
शुक्रवार को उपरोक्त टिप्पणियां मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई और संजीव खन्ना की पीठ ने पंडित अमरनाथ मिश्रा की याचिका खारिज करते हुए कीं। अमरनाथ मिश्रा ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के गत 10 जनवरी के आदेश को चुनौती दी थी। हाईकोर्ट ने गैरविवादित भूमि पर स्थित मंदिर में पूजा करने की मांग वाली उनकी याचिका पांच लाख के जुर्माने के साथ खारिज कर दी थी।
अमरनाथ मिश्रा की याचिका शुक्रवार को मुख्य न्यायाधीश की कोर्ट मे सुनवाई के लिए लगी थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील वीके बिजू ने अयोध्या में गैरविवादित अधिग्रहीत जमीन पर स्थित मंदिर में पूजा करने की इजाजत मांगते हुए कहा कि उनके मुवक्किल ने मामले में कई मुस्लिम संगठनों से मिल कर बातचीत की है और बहुत से संगठनों ने अपने सहमति पत्र देकर कहा है कि उन्हें अधिग्रहीत गैरविवादित जगह पर स्थित मंदिरों से कोई लेना-देना नहीं है और वे वहां पूजा कर सकते हैं।
बीजू ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी याचिका और उसमें दिए गए आधारों को देखे बगैर शुरुआत में ही याचिका खारिज कर दी और पांच लाख रुपये का जुर्माना भी लगा दिया जो कि ठीक नहीं है। इन दलीलों पर पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि आप इस देश को शांति से नहीं रहने देना चाहते।
हमेशा कोई न कोई कुरेदने चला आता है जबकि मध्यस्थता प्रक्रिया चल रही है। वकील बीजू ने कहा कि उनका मुवक्किल पिछले एक दशक से ज्यादा समय से मुद्दे को बातचीत और सहमति से सुलझाने का प्रयास कर रहा है। अगर कोर्ट उन्हें मौका दे तो उन्हें विश्वास है कि वे विभिन्न संगठनों और वर्गो आदि को सहमति बनाने के लिए राजी कर लेंगे। लेकिन, कोर्ट इन सब दलीलों से प्रभावित नहीं हुआ और उसने याचिका खारिज कर दी। साथ ही वकील की जुर्माना हटाने की मांग भी ठुकरा दी।
(साभार : जागरण.कॉम )