सीमा विवाद पर भारत से बातचीत को बेकरार नेपाल, 'सबूत' वाली कमेटी ने ओली सरकार को सौंपी रिपोर्ट
भारत के खिलाफ सीमा विवाद को लेकर सबूत जुटाने के लिए गठित नेपाली कमेटी ने अपनी रिपोर्ट ओली सरकार को सौंप दी है। इस कमेटी का गठन कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को नेपाल दावे के समर्थन में ऐतिहासिक सबूत जुटाने के लिए जून 2020 में किया गया था। नौ सदस्यीय विशेषज्ञ पैनल की रिपोर्ट मिलने के बाद नेपाल के विदेश मंत्री प्रदीप कुमार ग्यावली ने फिर एक बार भारत से बातचीत का अनुरोध किया है।
कई लोगों से पैनल ने की बातचीत
अपने अध्ययन के दौरान इस पैनल ने इतिहासकारों, पूर्व सरकारी अधिकारियों, राजनयिकों, सुरक्षा एजेंसियों के प्रमुखों, नौकरशाहों, राजनेताओं और पत्रकारों सहित विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तित्वों का साक्षात्कार लिया। हालांकि इसके गठन के समय नेपाल के कूटनीतिज्ञों और विशेषज्ञों ने सरकार के इस कदम पर सवाल उठाया था। उन्होंने कहा था क नक्शे को जब मंत्रिमंडल ने पहले ही मंजूर कर दिया है तो फिर विशेषज्ञों के इस कार्यबल का गठन किस लिये किया गया?
13 जून को नेपाली संसद से पास हुआ था विवादित नक्शा
बता दें कि भारत के साथ सीमा विवाद के बीच नेपाल ने चाल चलते हुए 20 मई को कैबिनेट में नए नक्शे को पेश किया था। जिसे नेपाली संसद की प्रतिनिधि सभा ने 13 जून को अपनी मंजूरी दे दी थी। इसमें भारत के कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को नेपाल का हिस्सा दिखाया गया है। वहीं भारत ने इसका विरोध करने के लिए नेपाल को एक डिप्लोमेटिक नोट भी सौंपा था। इसके अलावा, भारतीय विदेश मंत्रालय ने नेपाल के नए नक्शे को ऐतिहासिक तथ्यों के साथ छेड़छाड़ भी करार दिया था।
भारत ने जताया था कड़ा विरोध
भारत ने नेपाल के विवादित नक्शे पर कड़ा विरोध जताते हुए कहा था कि कृत्रिम विस्तार साक्ष्य व ऐतिहासिक तथ्यों पर आधारित नहीं है और यह मान्य नहीं है । भारत ने कहा है कि यह लंबित सीमा मुद्दों का बातचीत के जरिये समाधान निकालने की हमारी वर्तमान समझ का भी उल्लंघन है। हमने पहले ही इस मामले में अपनी स्थिति स्पष्ट कर दी है।
भारत के रोड के जवाब में नेपाल ने जारी किया था नक्शा
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जब लिपुलेख से कैलाश मानसरोवर जाने वाले रास्ते का उद्घाटन किया, तभी नेपाल ने इसका विरोध किया था। उसके बाद 18 मई को नेपाल ने नए नक्शा जारी कर दिया। भारत ने साफ कहा था कि ‘नेपाल को भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करना चाहिए। नेपाल के नेतृत्व को ऐसा माहौल बनाना चाहिए जिससे बैठकर बात हो सके।’