पाक ईशनिंदा कानून की भेंट चढ़ा एक और अल्पसंख्यक, मिली मौत की सजा

पाक ईशनिंदा कानून की भेंट चढ़ा एक और अल्पसंख्यक, मिली मौत की सजा
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इस्लामाबाद
पाकिस्तान की एक अदालत ने मंगलवार को एक ईसाई व्यक्ति को विवादास्पद के तहत मौत की सजा सुनाई। लाहौर सत्र अदालत ने आसिफ परवेज मसीह को ईशनिंदा का दोषी पाए जाने पर फांसी पर लटकाने का हुक्म दिया है। उसे कथित रूप से ईशनिंदा करने को लेकर 2013 में गिरफ्तार किया गया था।

फांसी के अलावा 50000 का जुर्माना भी
कोर्ट से जुड़े एक अधिकारी ने कहा कि लाहौर सत्र अदालत ने लाहौर की क्रिश्चियन कॉलोनी यौहाना आबाद के आसिफ परवेज मसीह को आज मृत्युदंड सुनाया। अदालत ने उस पर 50000 रूपये का जुर्माना भी लगाया और तीन साल की कैद की सजा भी सुनाई। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश मंसूर अहमद कुरैशी ने अभियोजन द्वारा सबूत और गवाह पेश करने के बाद उसे दोषी ठहराया।

सैकड़ों लोग ईशनिंदा के आरोप में जेल में कैद
पाकिस्तान की जेलों में मुसलमानों और ईसाइयों समेत सैंकड़ों लोग ईशनिंदा के आरोपों में बंद है। इससे पहले एक ऐसे ही मामले में 2010 में भी चार बच्चों की मां आसिया बीबी (48) को भी पड़ोसियों से विवाद होने पर इस्लाम का अपमान करने को लेकर दोषी ठहराया गया था। उसने बेगुनाह होने की बात कही थी लेकिन उसे आठ साल तक कालकोठरी में रखा गया। बाद में 2018 में पाकिस्तान के उच्चतम न्यायालय ने उसे बरी कर दिया। उसे उसी साल पाकिस्तान से चले जाने की इजाजत दी गयी और वह कथित रूप से कनाडा में रह रही है।

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को पीड़ित करने का हथियार ‘ईशनिंदा’
पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों को प्रताड़ित करने के लिए हमेशा ईशनिंदा कानून का उपयोग किया जाता है। तानाशाह जिया-उल-हक के शासनकाल में पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून को लागू किया गया। पाकिस्तान पीनल कोड में सेक्शन 295-बी और 295-सी जोड़कर ईशनिंदा कानून बनाया गया। दरअसल पाकिस्तान को ईशनिंदा कानून ब्रिटिश शासन से विरासत में मिला है। 1860 में ब्रिटिश शासन ने धर्म से जुड़े अपराधों के लिए कानून बनाया था जिसका विस्तारित रूप आज का है।

पाक में हर साल 1000 से ज्यादा अल्पसंख्यक लड़कियों का धर्म परिवर्तन
मानवाधिकार संस्था मूवमेंट फॉर सॉलिडैरिटी एंड पीस (MSP) के अनुसार, पाकिस्तान में हर साल 1000 से ज्यादा ईसाई और हिंदू महिलाओं या लड़कियों का अपहरण किया जाता है। जिसके बाद उनका धर्म परिवर्तन करवा कर इस्लामिक रीति रिवाज से निकाह करवा दिया जाता है। पीड़ितों में ज्यादातर की उम्र 12 साल से 25 साल के बीच में होती है।

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