उइगरों से जबरन मास्क बनवा रहा चीन

उइगरों से जबरन मास्क बनवा रहा चीन
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पेइचिंग
कोरोना वायरस की महामारी के बढ़ने के साथ ही पर्सनल प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (PPE) की मांग बढ़ती जा रही है। ऐसे में चीनी कंपनियां घरेलू और वैश्विक मांग पूरी करने के लिए उत्पादन बढ़ाने की हर कोशिश में जुटी हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इसके लिए चीनी कंपनियां शिनजियांग प्रांत के उइगर मुस्लिमों का बड़े स्तर पर इस्तेमाल कर रही हैं। रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सरकार ने इसके लिए प्रोग्राम भी चलाया है जिसके तहत जबरन इन लोगों से काम कराया जा रहा है।

तेजी से बढ़ीं कंपनियां
इस प्रोग्राम के तहत इस अल्पसंख्यक समुदाय को फैक्ट्री और सर्विस के काम पर लगाया जा रहा है। इन्हें PPE की सप्लाई चेन का हिस्सा बना दिया गया है। चीन के नैशनल मेडिकल प्रॉडक्ट्स ऐडमिनिस्ट्रशन के मुताबिक कोरोना महामारी के पहले सिर्फ 4 चीनी कंपनियां शिनजियांग में मेडिकल ग्रेड का प्रोटेक्टिव इक्विपमेंट (सुरक्षा उपकरण) बनाती थीं। 30 जून तक यह संख्या 51 पर पहुंच गई है।

दुनियाभर में बेच रहीं उत्पाद
स्टेट मीडिया रिपोर्ट्स और पब्लिक रेकॉर्ड्स के अनैलेसिस के आधार पर NYT का कहना है कि इनमें से कम से कम 17 कंपनियां लेबर ट्रांसफर प्रोग्राम के तहत काम कर रही हैं। ये कंपनियां ज्यादातर घरेलू तौर पर इस्तेमाल होने वाले उपकरण बनाती हैं लेकिन टाइम्स का कहना है कि कई और कंपनियां शिनजियांग के बाहर हैं जो उइगरों से मजदूरी करा रही हैं और दुनियाभर में उत्पाद निर्यात कर रही हैं।

उइगरों के लिए बनाए गए हैं नियम
ट्राइम्स ने एक शिपमेंट को ट्रेस किया है जो अमेरिका के जॉर्जिया में एक मेडिकल सप्लाई कंपनी को भेजा गया था। यह चीन के हुबेई प्रांत की फैक्ट्री से आया था जहां 100 से ज्यादा उइगर मजदूरों को भेजा गया है। इन उइगरों को चीन की भाषा मंदारिन (Mandarin) सीखनी पड़ती है और हर हफ्ते होने वाले चीनी ध्वजारोहण में चीन के प्रति समर्पण की प्रतिज्ञा करनी होती है। स्टेट मीडिया इसे गरीबी दूर करने का नाम देकर खूब प्रचार करता है।

चीन का दावा, गरीबी से बाहर आ रहे
वहीं, यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया और बर्कली के मानवाधिकार जांच लैब और उइगर मानवाधिकार प्रॉजेक्ट ने ऐसे दर्जनों वीडियो और सोशल मीडिया रिपोर्ट इकट्ठा की हैं जिनमें लेबर ट्रांसफर के सबूत हैं। टाइम्स को प्रतिक्रिया देते हुए अमेरिका में चीनी दूतावास के प्रवक्ता ने कहा है कि इस प्रोग्राम की मदद से स्थानीय निवासी रोजगार के जरिए गरीबी से बाहर आ रहे हैं और बेहतर जीवन जी रहे हैं।

‘अंतरराष्ट्रीय कानून में यह जबरन मजदूरी’
हालांकि, यहां काम करने वाले मजदूरों की संख्या में कोटा लागू करने और सहयोग करने से इनकार करने पर जुर्माना लगाए जाने से ऐसे संकेत मिलते हैं कि काम जबरन कराया जा रहा है। Human Rights Initiative at the Center for Strategic and International Studies की डायरेक्टर एमी लेर का कहना है कि दबावपूर्ण कोटा लागू किए जाते हैं जिससे लोग फैक्ट्री में बिना मर्जी के काम करने को मजबूर होते हैं। उनका कहना है कि अंतरराष्ट्रीय कानून की नजर में यह जबरन मजदूरी है।

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