नेपाली नक्शे का विरोध, भारत का डिप्लोमेटिक नोट

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काठमांडू
भारत सरकार ने नेपाल के नए नक्शे को लेकर डिप्लोमेटिक नोट भेजकर अपना आधिकारिक विरोध दर्ज करवाया है। नेपाली मीडिया ने एक सांसद के हवाले से बताया है कि भारत सरकार ने 24 जून को नेपाल सरकार को नक्शे को लेकर डिप्लोमेटिक नोट भेजकर विरोध जताया था। इस नए नक्शे में नेपाल ने भारत के लिपुलेख, कालापानी और लिम्पियाधुरा को अपने क्षेत्र में दिखाया है।

भारत ने नक्शे का किया आधिकारिक विरोध
काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, नेशनल असेंबली (नेपाली संसद) के डेलीगेटेड राइट्स मैनेजमेंट एंड गवर्नमेंट एश्योरेंस कमेटी के अध्यक्ष नारायण बिदारी ने बताया कि नेपाली विदेश मंत्रालय ने समिति की बैठक में बताया कि 24 जून को भारत ने नेपाल को एक राजनयिक नोट भेजकर नक्शे को लेकर अपना विरोध जताया था।

24 जून को भारत ने भेजा डिप्लोमेटिक नोट
भारत के डिप्लोमेटिक नोट के बारे में नेपाली विदेश मंत्रालय ने सार्वजनिक रूप से कुछ नहीं कहा है। न ही भारत ने नोट भेजने के बारे में खुलासा किया है। बिदरी ने कहा कि नेपाल द्वारा किए गए दावों को खारिज करते हुए भारत ने 24 जून को विदेश मंत्रालय को एक विरोध पत्र भेजा था और हमें पत्र की एक प्रति मिली है।

20 मई को नेपाली कैबिनेट ने पास किया था नक्शा
बता दें कि ओली सरकार ने 20 मई को नेपाल के नए नक्शे को कैबिनेट से मंजूरी दी थी। जिसके बाद नेपाली संसद के दोनों सदनों ने नक्शे को लेकर संविधान संशोधन विधेयक को सर्वसम्मति से पारित कर दिया था। जिसके बाद राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी ने इस पर हस्ताक्षर कर नक्शे में बदलाव की प्रक्रिया को पूर्ण किया था।

भारत ने तब भी किया था विरोध
नेपाल के नए नक्शे को लेकर भारत ने शुरू से ही विरोध जताया था। भारत सरकार के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने ओली सरकार के नए नक्शे को प्रकाशित करने के कुछ घंटों बाद एक बयान जारी कर नेपाल के कदम को एकपक्षीय कार्रवाई बताया था। उन्होंने यह भी कहा था कि ऐतिहासिक तथ्यों और सबूतों पर आधारित नहीं है।

क्या है विवाद?
भारत के लिपुलेख में मानसरोवर लिंक बनाने को लेकर नेपाल ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। उसका दावा है कि लिपुलेख, कालापानी और लिपिंयाधुरा उसके क्षेत्र में आते हैं। नेपाल ने इसके जवाब में अपना नया नक्शा जारी कर दिया जिसमें ये तीनों क्षेत्र उसके अंतर्गत दिखाए गए। इस नक्शे को जब देश की संसद में पारित कराने के लिए संविधान में संशोधन की बात आई तो सभी पार्टियां एक साथ नजर आईं। इस दौरान पीएम केपी शर्मा ओली ने भारत को लेकर सख्त रवैया अपनाए रखा।

नेपाल में सत्‍ता में वामपंथी, चीन से बढ़ाई नजदीकी
नेपाल में इन दिनों राजनीति में वामपंथियों का दबदबा है। वर्तमान प्रधानमंत्री केपी शर्मा भी वामपंथी हैं और नेपाल में संविधान को अपनाए जाने के बाद वर्ष 2015 में पहले प्रधानमंत्री बने थे। उन्‍हें नेपाल के वामपंथी दलों का समर्थन हासिल था। केपी शर्मा अपनी भारत विरोधी भावनाओं के लिए जाने जाते हैं। वर्ष 2015 में भारत के नाकेबंदी के बाद भी उन्‍होंने नेपाली संविधान में बदलाव नहीं किया और भारत के खिलाफ जवाबी कार्रवाई के लिए केपी शर्मा चीन की गोद में चले गए। नेपाल सरकार चीन के साथ एक डील कर ली। इसके तहत चीन ने अपने पोर्ट को इस्तेमाल करने की इजाज़त नेपाल को दे दी।

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