कोरोना टेस्ट किट के नतीजों पर वैज्ञानिकों को संशय

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वॉशिंगटन
एक ओर जहां दुनियाभर में को खोलने को लेकर बहस चल रही है, एक स्टडी में पता चला है कि वायरस को टेस्ट करने वाली किट ही इस रास्ते में बड़ी रुकावट है। वैज्ञानिकों का कहना है कि COVID-19 जांच किट से होने वाली जांच से गलत रिपोर्ट आने के मामलों पर और भी ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है क्योंकि यह महामारी को नियंत्रित करने के लिए अहम है। उन्होंने सरकारी एजेंसियों को सुझाव दिया है कि वे निर्माताओं को जांच की दक्षता संबंधी जानकारी मुहैया कराएं।

अभी तक सटीक नतीजे नहीं
अमेरिका के डार्टमाउथ स्थिति द जिसेल स्कूल ऑफ मेडिसिन के शोधकर्ताओं ने कहा कि बड़े पैमानों पर जांच की कमी अर्थव्यवस्थाओं को दोबारा खोलने में बड़ी रुकावट है। न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन में छपे पेपर में वैज्ञानिकों ने कहा कि जांच का दायरा बढ़ा है लेकिन नतीजों का सटीक न होना अब भी चिंता का विषय है। द जिसेल स्कूल ऑफ मेडिसिन से संबद्ध और शोधपत्र के प्रमुख लेखक स्टीवन वोलोशिन ने कहा, ‘संक्रमण का पता लगाने के लिए होने वाली जांच में गले और नाक से लिए गए नमूनों का इस्तेमाल होता है और यह दो तरीकों से गलत हो सकता है।’

उन्होंने कहा, गलती से नमूने पर संक्रमित होने का लेबल लगाने पर व्यक्ति को अनावश्यक रूप से आइसोलेशन में रहने, उसके संपर्क में आए लोगों की पहचान जैसे असर हो सकते हैं। वैज्ञानिकों के मुताबिक मौजूदा जांच किट के सटीक नतीजे आने की दर काफी हद तक कम है। उन्होंने कहा कि पिछले अध्ययनों के मुताबिक इन किट की संवेदलशीलता 70 प्रतिशत तक हो सकती है।

निगेटिव रिपोर्ट आने से खतरा
पेपर में वैज्ञानिकों ने लिखा, ‘संवेदनशीलता के आधार और जांच से पहले 50 प्रतिशत सटीक नतीजे आने की संभावना के आधार पर जांच के बाद 23 फीसदी मामलों में संक्रमण का पता नहीं चलने की आशंका है। यह किसी को संक्रमण मुक्त मानने के स्तर से कहीं अधिक है। वोलोशिन ने कहा, ‘गलती से निगेटिव नतीजे आने का नकारात्मक असर ज्यादा होगा क्योंकि बिना लक्षण वाले व्यक्ति को आइसोलेशन में नहीं रखा जाएगा और वह अन्य लोगों को भी संक्रमित करेगा।’

वैज्ञानिकों ने अपने विश्लेषण में मौजूदा जांच किट की सीमाओं पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि इन जांच किटों की संवेदनशीलता में अंतर और जांच को प्रमाणित करने के लिए मानक प्रक्रिया की अनुपस्थिति चिंता का विषय है। विभिन्न अध्ययनों की समीक्षा करने के आधार पर शोधकर्ताओं ने कहा कि दुनिया के कई हिस्सों में संक्रमितों की जांच रिपोर्ट निगेटिव आने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं जो चिंता का विषय है।

जांच के तरीके साफ नहीं
वैज्ञानिकों ने 957 कोरोना संक्रमितों या संक्रमण के संदिग्धों पर किए गए अध्ययन की समीक्षा करते हुए कहा कि जांच के गलत नतीजे आने की आशंका 2 से 29 प्रतिशत तक है। हालांकि, वैज्ञानिकों ने कहा कि यह पुख्ता सबूत नहीं है क्योंकि इन मरीजों की जांच के तरीके स्पष्ट नहीं है। शोधकर्ताओं ने जांच किट को लेकर किए गए समीक्षा अध्ययन के आधार पर कहा कि आम तौर पर इस्तेमाल किए जा रहे आरटी-पीसीआर किट से लगातार आ रहे गलत नतीजे चिंता का विषय है।

हालांकि, इस संबंध में सबूत बहुत ही सीमित हैं। वोलोशिन ने कहा, ‘जांच देश को खोलने में मदद कर सकती है लेकिन यह तभी हो सकता है जब जांच उच्च मानकों के आधार पर संवेदनशील और प्रमाणिक हो। वरना हम पूरे भरोसे से किसी व्यक्ति को संक्रमणमुक्त नहीं घोषित कर सकते हैं।’ शोधकर्ताओं ने कहा कि औषधि मंजूरी एजेंसियों जैसे अमेरिकी खाद्य और औषधि प्रशासन (एफडीए) को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि किट निर्माताओं को नतीजों की सटीकता संबंधी जानकारी मुहैया कराई जाए खासतौर पर बाजार में बेचने की अनुमति देने की प्रक्रिया के दौरान। उन्होंने कहा कि बिना लक्षण वाले मरीजों में जांच नतीजों की सटीकता त्वरित प्राथमिकता है।

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