चीन के करीब पहुंचा अमेरिकी युद्धपोत, तनाव बढ़ा
कोरोना वायरस महामारी के कारण अमेरिका और चीन में तनाव चरम पर पहुंच गए हैं। वहीं शुक्रवार को विवादित साउथ चाइना सी में स्थित ताइवान की खाड़ी से होकर अमेरिकी युद्धपोत के गुजरने के बाद हालात और बिगड़ गए हैं। बता दें कि चीन शुरू से ही ताइवान को अपना हिस्सा बताता आया है। जबकि, ताइवान अपने आप को एक स्वतंत्र देश घोषित कर रखा है।
चीन-अमेरिका में बढ़ सकता है तनाव
चीन की सरकार पहले से ही ताइवान को दिए जा रहे अमेरिकी सपोर्ट से गुस्से में है। ऐसी स्थिति में ताइवान की खाड़ी में अमेरिकी युद्धपोत की मौजूदगी माहौल को और बिगाड़ सकती है। ताइवान के रक्षा मंत्रालय ने शुक्रवार को कहा कि अमेरिकी युद्धपोत ताइवान स्ट्रेट से होकर साउथ चाइना सी में नियमित गश्त पर निकला है। मंत्रालय ने यह भी कहा कि ताइवान के सशस्त्र बलों ने जहाज को पूरी सुरक्षा प्रदान की।
यूएस पैसिफिक फ्लीट ने की पुष्टि
यूएस पैसिफिक फ्लीट ने अपने सोशल मीडिया के जरिए बताया कि जिस जहाज ने शुक्रवार को ताइवान की खाड़ी में गश्त की वह Arleigh Burke-class destroyer यूएसएस रसेल है। बता दें कि अमेरिकी नौसेना अक्सर ताइवान के साथ मिलकर इस इलाके में गश्त लगाती रहती है।
हाल में ही चीन ने अमेरिका को दी थी कड़ी चेतावनी
बता दें कि हाल में ही ताइवानी राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन की जीत को लेकर अमेरिका के बधाई संदेश पर चीन ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी। चीनी विदेश मंत्रालय ने कहा था कि अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने ताइवान के राष्ट्रपति त्साई इंग-वेन को शुभकामना देकर ताइवान-चीन संबंधों और चीन-अमेरिका संबंधों को गंभीर नुकसान पहुंचाया है। इससे क्षेत्र की शांति को भी गंभीर खतरा पैदा हो गया है।
क्यों है चीन और ताइवान में तनातनी
1949 में माओत्से तुंग के नेतृत्व में कम्युनिस्ट पार्टी ने चियांग काई शेक के नेतृत्व वाले कॉमिंगतांग सरकार का तख्तापलट कर दिया था। जिसके बाद चियांग काई शेक ने ताइवान द्वीप में जाकर अपनी सरकार का गठन किया। उस समय कम्यूनिस्ट पार्टी के पास मजबूत नौसेना नहीं थी। इसलिए उन्होंने समुद्र पार कर इस द्वीप पर अधिकार नहीं किया। तब से ताइवान खुद को रिपब्लिक ऑफ चाइना मानता है।
ताइवान को अपना हिस्सा मानता है चीन
चीन ताइवान को अपना अभिन्न अंग मानता है। चीनी कम्यूनिस्ट पार्टी इसके लिए सेना के इस्तेमाल पर भी जोर देती आई है। ताइवान के पास अपनी खुद की सेना भी है। जिसे अमेरिका का समर्थन भी प्राप्त है। हालांकि ताइवान में जबसे डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव पार्टी सत्ता में आई है तबसे चीन के साथ संबंध खराब हुए हैं।