'किसान आंदोलन देशभक्ति से भरा', तो फिर शाहीन बाग को लेकर क्यों छिड़ गई बहस

'किसान आंदोलन देशभक्ति से भरा', तो फिर शाहीन बाग को लेकर क्यों छिड़ गई बहस
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नई दिल्ली की तुलना नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ दिल्ली के शाहीन बाग में महीनों तक चले धरने से होने लगी है। सुप्रीम कोर्ट में भारतीय किसान यूनियन (BKU) भानु ग्रुप के वकील एपी सिंह ने कहा कि शाहीन बाग के धरने की तुलना किसान आंदोलन से नहीं की जा सकती है क्योंकि किसान आंदोलन में देशभक्ति का पुट है। उनके इस बयान पर कुछ लोग यह पूछने लगे कि क्या शाहीन बाग आंदोलन देशविरोधी था?

एक किसान संगठन के वकील के बयान पर छिड़ी बहस
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता एपी सिंह के बयान के पक्ष और विपक्ष में दलीलें दी जाने लगी हैं। ट्विटर पर यह बहस छिड़ गई कि क्या शाहीन बाग आंदोलन देशभक्ति की भावना के खिलाफ था? इसी बहस के कारण ट्विटर पर Shaheen Bagh टॉप ट्रेंडिंग टॉपिक बन गया।

ट्विटर हैंडल ने @rupagulab ने एपी सिंह के बयान पर रोष प्रकट करते हुए कहा कि शाहीन बाग का धरना भी तो बिल्कुल शांतिपूर्ण और देशभक्ति के रंग में रंगा था। उन्होंने लिखा, “ये क्या है? शाहीन बाग का प्रदर्शन भी शांतिपूर्ण था और देशभक्ति से लबालब भी। वहां एक ही समस्या पैदा हुई जब एक लड़के ने प्रदर्शनकारियों को गोली मारने की कोशिश की। इस लड़के ने हाल ही में बीजेपी जॉइन कर ली। उसे पुरस्कार मिला।”

वहीं, कांग्रेस नेता सलमान अनीस सोज ने लिखा, “कई अन्य आंदोलनों की तरह मैं शांतिपूर्ण प्रदर्शन के किसानों के अधिकार का भी समर्थन करता हूं। लेकिन उनका प्रतिनिधित्व करने वाले वकील ने शाहीन बाग के प्रदर्शनों को जो देशविरोधी बताया, उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। यह आरएसएस और बीजेपी की भाषा है।”

ट्विटर यूजर सैयद उस्मान ने कहा, “शाहीन बाग की अगुवा मुस्लिम महिलाएं थीं। सीएए, एनआरसी विरोधी प्रदर्शन बहुत बड़ा था जो महीनों तक पूरे देश में चला। हर जगह महिलाओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया। लेकिन उस वक्त किसी को नहीं लगा कि महिलाओं को घर में रहना चाहिए, न कि प्रदर्शन करना चाहिए।”

तन्मय शंकर ने लिखा, “जियो के टावरों पर हमले के बाद उन्होंने (किसानों ने) पतंजलि के प्रतिष्ठानों को निशाना बनाना शुरू किया है। यह (किसान आंदोलन) कभी भी कृषि विधेयक को लेकर था ही नहीं, बल्कि यह मोदी सरकार के खिलाफ एक सोचा-समझा एजेंडा है जैसा कि शाहीन बाग में हुआ था।”

सुप्रीम कोर्ट ने बनाई चार सदस्यीय समिति
ध्यान रहे कि सुप्रीम कोर्ट ने अगले आदेश तक नए कृषि कानूनों को लागू करने पर रोक लगा दी और केंद्र तथा दिल्ली की सीमाओं पर कानून को लेकर आंदोलनरत किसान संगठनों के बीच जारी गतिरोध को समाप्त करने के लिए चार सदस्यीय समिति का गठन किया। इस समिति में बीकेयू के अध्यक्ष भूपिंदर सिंह मान, शेतकारी संगठन (महाराष्ट्र) के अध्यक्ष अनिल घनावत, अंतरराष्ट्रीय खाद्य नीति शोध संस्थान दक्षिण एशिया के निदेशक प्रमोद कुमार जोशी और कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी शामिल हैं।

साभार : नवभारत टाइम्स

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